तेरे बिन अधूरे हैं हम जेसे मांझे बिन पतंग
तेरे बिन ऐसे लगे जेसे धरती से दूर गगन-
मुहब्बत अब शक के घेरे में आने लगी है
आज कल की पीढ़ी ज़ब से ज़िस्म पे दिल लुटाने लगी है-
कौन सा सुख है दुख में जो तुम ऐसे मौन रहने लगे हो
हसीं ठिठोली छोड़ कर एकांत में तुम जो गुम सुम से रहने लगे हो-
मुसाफिर दुनिया को एक दिन तुझे छोड़ कर जाना होगा
मिट्टी और अंधेरी कब्र ही तेरा आख़री ठिकाना होगा-
खुशहाल थी दुनियाँ हमारी एक शख्स ने हमें तबाह कर दिया
मुहब्बत सिखा कर हमें फिर खुद से जुदा कर दिया-
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है मेरे दूर जाने से
मैं ही पागल थी तुम्हारी खातिर लड़ी थी जमाने से-
रात की बाहों में सो कर भी सुकून कहां मिलता है
जो ना लिखा हो तक़दीर में वो दुआ से भी कब मिलता है-
इस बार मैंने दिल को मेरे पत्थर कर लिया है
मेहबूब की बेरुखी में लिखें गए मेरे अल्फाज़ो ने
लोगों के दिलों में घर कर लिया है-
हर किसी के दिल में बस कर क्या करोगे...
जिसे चाहा था वही मेरा ना हुआ तो किसी ओर
को अपना बना कर क्या करोगे..-
केवल तुम को ही दिल ने हमराज़ बनाया था
मुहब्बत का फूल मेरे सीने में सिर्फ तुमने खिलाया था-