Marisha S Sengar   (MSS)
39 Followers · 17 Following

Joined 28 October 2017


Joined 28 October 2017
8 JAN 2021 AT 18:46

मुरीद-ए-जुदाई औरों से जुदा शौक फरमा रहे हैं
हम पत्थर नहींं, चट्टानों से ठोकर खा रहे हैं
उससे रंज भी हमारे खाते में फायदा लिख गया
सो कसीदे अपने ज़ोर-आज़माइश-ए-हुनर के पढ़वा रहे हैं
हमारे ताब-ए-ज़ब्त की दाद दीजिये हुज़ूर
दाद दीजिये किस बे-दरेगी से ज़ुबान पर पत्थर रखवा रहे हैं
असीर-ए-इज़्ज़त को यक-ब-यक हो आया यकीं
गुरेज़ी कर सज़ा अपने ही पर्चे में लिखवा रहे हैं

-


6 JAN 2021 AT 13:00

हर्फ़ दर हर्फ़ खड़े किये थे हमने ख्वाबगाह
सितमगरों के तगाफुल-ए-पैहम की मगरूरियत ने बेदर्दी ढहा दिए,
उसको ग़ुमान है अपने बागानों की पैदावार पर
वो जानता नहीं उसकी सर-ए-दहलीज़ पर हमने अश्क़ कितनी ताब से बहा दिए
ताज्जुब करते हैं हुक्मरानी की ख़ू से पस्त हो
सोगवार ज़बानों ने शिकायत करने के हक़ भी गँवा दिए






-


6 DEC 2020 AT 23:41

The four walls of the kitchen
perpetually reeked of her sweat
Dripping from her clothes
A leaking tap unattended
and silent tears unnoticed
She scoured the floors hunched on her knees
And the mauvish scars peeked through the hem of her faded blouse,
bloodshot red and drunk
etched onto her ashen bare back
a signboard that screams

"Women who fear pity become men"










-


11 NOV 2020 AT 17:06

AN ISLAND OF SORTS

I kiss my bed,
Like a sinking man
kisses the land, after an ordeal with the sea
And then lie stranded and stretched for hours.
You come and go like tides,
And like shiver, creep upward from my feet
I resist and I lose.
I drown and am freed.




-


1 OCT 2020 AT 11:43

मैं नहीं जानती,
कि मुझे तुम्हारे लिए, तुम-सा बनाया गया है,
या मेरी इच्छाओं को ढाल दिया गया है
तुम्हारी ही देह के साँचे में

इस रहस्य को वो चित्रकार ही भेद सकता है,
जो खुद यह प्रभेद करने में सफल हो
कि उसने कौन सी आँख दूसरी आँख के अनुरूप बनाई है
या वो मूर्तिकार,
जो दो हूबहू रचनाएँ गढ़ने के पश्चात भी,
नक़ल को ताड़ ले





-


14 SEP 2020 AT 12:58

अपनी पहचान से घुटन होती है उन्हें,
और यहां मुझे किसी और की खाल में सांस नहीं आती।




- मारिषा

-


12 SEP 2020 AT 23:55

तुमसे हर एक अरसे के बाद मिलना,
जैसे मई के महीने में पौधों को पानी देना,
एक दिन की नागा मुरझा देती है पत्तियां,
और पांचवे दिन मर जाता है पौधा

पहले और पांचवे दिन के बीच बूंद- बूंद सींचती हूं मैं एक कविता,
छठे दिन तुमसे मिलने के बहाने के लिए।

- मारिषा

-


17 JUL 2020 AT 13:43

वो ज़मीन पर फैला पड़ा है लोकतंत्र, रायते की तरह,
और घुटनों पर आ गया है उसका चौथा खम्भा
जब तुम आँखें मींचकर उजाले के लिए मचल रहे थे,
तभी उसकी आधारशिला का टेंडर घोटाला हो गया,
और बदल दी गयी वो वोटों की जगह नोटों से
उन्मादी एक लहर ऐसी चली, कि ख्वाबगाह ढह गए और विविधता मसकीन हो गयी
उन्हीं के प्रश्न चिन्हों के फंदों पर लटका दिए गए इतने 'विद्रोही' ,
कि बाकी ज़ुबानों पर दही जम गया, और आवाज़ें तमाशबीन हो गयीं।

-


16 JUL 2020 AT 14:31

ढलती शाम के अँधेरे में फड़फड़ाते हैं वो सफ्हे,
जो मैंने उजालों में पलटे गए इतराते पन्नों के पीछे सहेजे हैं
गैर-ऐ-नज़रों से छिपाकर तुझपर लिखी मेरी नज़्में,
मेरी खुदगर्ज़ी की गवाह हैं।






-


14 JUL 2020 AT 21:51

इल्मा कौन थी
इल्मा थी-
चीथड़ों के परदों पर झूलती
एक जीवंत विडंबना;
चूल्हे में जले हाथों से कच्चे आँगन में रोपा गया
एक जंगली पौधा;
एक सुपारी की छाप से रंगीली मुस्कान;
पैबंदो से सजा एक रंगीला कुर्ता;
और बटोरी हुई रंगीली पन्नियों की उगाही
बेशक कुछ फीकी सी पर रंगीली बदस्तूर ही;
एक सस्ता कपड़ा जो छोड़ देता है रंग चार
धुलाई में;
चांटों से रंगे चुसे हुए आम जैसे गाल;
तोते की कुतरी हुई एक कच्ची कैरी;
मकान की दीवार की सांस में उगता पीपल;
हवा की बेपरवाही;
तीन पैर की कुर्सी;
कटोरदान की आखिरी रोटी;
एक बेलागम ज़बान
और नशे में धुत्त पितृसत्ता के दिए हुए घाव;
भोर तक जगती सूखी आँखें;
बरसाती गड्ढे की मछली;
और वो हद से ज़्यादा ज़ाहिर चीज़
जो एक वक़्त के बाद गायब हो जाए।

-


Fetching Marisha S Sengar Quotes