Mario   (मयूर गुप्ता)
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Joined 6 April 2019


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26 JUL 2021 AT 0:37

मेरी मंजिल आप हो
पाकर रहूंगा एक दिन
या शायद पा लिया है
कुछ
आपका एक हिस्सा अपने अंदर
खोजने की यह कोशिश आपको
चिरजीवन, निरंतर
जारी रहेगी
खुद में ही ...!!

ॐ नमः शिवाय ।

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4 APR 2021 AT 22:06

बातें, यादें,खुसबू से
दिल फिर अन्जान है
है दिन, सवेरा, रात सब
पर थम गई शाम है
चली जा रही शतरंज की बाजी
ऊँट, घोड़ा, हाथी के साथ
ये क्या...रानी आज गुमनाम है
रिस रही है मदिरा
मय के प्यालों से
मदहोशी है छायी
टूट रहे जाम है
शहर-शहर, गांव-गांव
फिर रहा मारा-मारा
बदहवास...
पूछ रहा खुद का ही नाम है
जिस मोड़ पे हमनवां बने थे
उसी मोड़ से अजनबी बनने निकले हैं
वो 2011 अप्रैल 3 की सुबह थी
ये 2021 अप्रैल 3 की शाम है ।।

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29 MAR 2021 AT 0:13

Out beyond ideas of wrongdoing and rightdoing,
there is a field. I’ll meet you there.
When the soul lies down in that grass,
the world is too full to talk about.
Ideas, language, even the phrase “each other”
doesn’t make any sense.
The breeze at dawn has secrets to tell you.
Don’t go back to sleep.
You must ask for what you really want.
Don’t go back to sleep.
People are going back and forth across the doorsill
where the two worlds touch.
The door is round and open.
Don’t go back to sleep.

---Rumi

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26 MAR 2021 AT 22:33

चाहता तो रोक सकता था उस दिन तुम्हें
पर किस हक से रोकता
कौन था मैं...??
बाँधना चाहता था
किसी बंधन में तुम्हें कहीं
हो सकता था वर्तमान तुम्हारा
किन्तु भविष्य नहीं ।
कदमों को मेरे
इसी हकीकत ने रोक लिया
ढाँढस बढाते खुद को
तुझसे अलविदा कह दिया |
इल्म न हो तुम्हें शायद
उसी मोड़ पर आज भी
निस्तेज खड़ा हूँ
भूलने की कोशिश में तुम्हें
आज और करीब पाया हूँ ।
घाम पानी सह लेने के बाद
इस मूरत का जलमग्न होना ही सही है
क्योंकि खंडित हो चुका हूँ
जिसमे मेरा कोई दोष नहीं है ।

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11 FEB 2021 AT 20:11

थक सा गया हूँ कुछ
जीवन में आपाधापी रहती है
शोर मेरे अंदर है
शोर मेरे बाहर है
पर चेहरे पे खामोशी रहती है
टूट गया हूँ
एक सी दिनचर्या से
दिन गुलज़ार तो
रातें गमगीन निकलती हैं
तोड़ना चाहता हूँ
अब ये हार-जीत का क्रम
छोड़ देना चाहता हूँ
समझना अब इस जीवन का मर्म
रोज नई कहानी शुरू होती है
मध्यांतर, कालांतर तक पहुँच
चर्मोत्कर्ष तक जा बस
अधूरी रह जाती है ।

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14 JAN 2021 AT 21:46

जिस छोर से खत्म हुआ
उसी छोर की पगडंडी से
बढ़ चला है मेरा सिलसिला
दोहराता जीवन का अनुक्रम
भीतर जाता बाहर आता
कभी दिखता साफ
तो कभी धुंधला
निकलता सूरज सुबह जब
परछाई मेरी है फैलती
शाम को वही खालीपन
शायद ! प्रकृति भी
मेरा रहस्य है खोजती
रात होती है तो भटक जाता हूँ
दूर उस काले आसमान में
सितारों में खो जाता हूँ
पाता हूँ खुद को
किसी काल्पनिक कहानी का हिस्सा
अधकचरी नींद में जैसे
जहाज डूब गया हो गुलिवर का
उस परित्यक्त नाव की तलाश
वास्तविक है
या है आभाषी
जाने कब खत्म होगी ये
लिलिपुट से ब्लेफुस्कु की दूरी ।

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15 AUG 2020 AT 9:58

some are slave of religion
some are slave of bigotry
some are blind followers of someone
some are questoining others ability
some are throwing sludge
on our independence war heros
some are making our history a mockery
some blindfolded for every wrong deed
some are unstable in the land of slippery
some destroying all possible
prosperity of ray
some are busy in jingoism
and letting down nation anyway
nobody is chaste in the epoch of darkness
if anyone is there
then I wish him
Happy Independence Day
and...all the best.

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7 AUG 2020 AT 23:02

तलाश जिंदगी की थी
दूर तलक चले
जिंदगी तो मिली
तज़ुर्बे भी कुछ कम न रहे
तेईस महीनों का सफर था
घर तक भी पहुँचना था
कभी लगते थे पराये जो
सफर में हमसफ़र बन गए
चलूँगा जल्द ही
नई मंजिल की तलाश में
नये साथी को तलाशने
पुराने हमराही जो बिछड़ रहे
पुरानी लत छोड़ना
कहाँ आसान होता है
बिना किसी दिनचर्या के
दिन कहाँ कट पाता है
यथार्थ के धरातल पर खड़े हो
आदर्शवाद की तरफ एक दिन उन्मुक्त होंगे
क्योंकि मुसाफिर हूँ....
जिन्दगी के किसी हसीन मोड़ पे
एक दिन फिर मिलेंगे ।

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29 JUN 2020 AT 22:06

Sometimes I feel to go back in time and confess that you were the best companion that I ever had.

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27 JUN 2020 AT 22:26

रोज सुबह उठकर सोचता हूँ
आज से रहूँगा जीवन मे अपने सकारात्मक
जिंदादिल रहूँगा
खूब हसूंगा
फटकने न दूँगा आसपास
कोई चीज नकारात्मक
पर गाहे-बगाहे
टकरा ही जाता हूँ नकरत्मक्ताओं से
मिल ही जाती है कोई विक्षिप्त करने वाली कहानी
कभी सोशल मीडिया पर
तो कभी अखबारों के पन्नों में
एक दोस्त ने सलाह दी
तुम बहुत नकारात्मक होते जा रहे हो
कोई सकारात्मक कहानी तुम खुद क्यों नहीं गढ़ते
कुछ दिन दिन के लिये ही सही इस दुनिया से कट क्यों नहीं जाते
सलाह पर उसकी अमल करना चाहता हूं
कोई प्रेरणादयी कहानी अब लिखना चाहता हूँ
जिसमे किसान को मिल जाता है
उसकी फसल का वाजिब दाम
प्रवासी भी पहुँच जाते हैं
सुरक्षित अपने-अपने गांव
महामारी का नहीं है जहाँ कोई नामो-निशान
रामू भी अपना
आँखों में तेल चढ़ा
अंत में कर जाता है पास कलेक्टर का एग्जाम
छोटी-मोटी बीमारियों का
चिकित्सक भी कर देते है मुफ्त इलाज
भ्रष्ट अधिकारी भी बन सुलभ
लाते हैं आमजन के जीवन मे बदलाव
किसी धर्म विशेष की रीतियों पर
जहाँ होती नहीं किसी को परेशानी, लिखना चाहता हूँ मैं ऐसी कोई सकारात्मक कहानी ।

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