10 JUL 2018 AT 6:28

उन ख़तों को जलाया था इक दिन मैंने,
जाने कैसे...
इस दिल को समझाया था उस दिन मैंने...
खुशबू बसी थी जिनमें तुम्हारी,
राख होकर उड़ गई वो बातें सारी...
घुल गए इन हवाओं में वो सारे पल,
जिनके बिना गुज़ारना था मुझे आने वाला कल...
अगली सुबह रुसवाई वाली थी,
हाँ! ज़िन्दगी अब तन्हाई वाली थी...
पर गाहे बगाहे हवा जो कानों में,
तुम्हारे कुछ ख़त पढ़ जाती है...
तब एक हल्की सी मुस्कान की परत,
ज़िन्दगी में कुछ दिनों के लिए चढ़ जाती है...
पर ये सिलसिला भी इक दिन बंद हो जाना है,
हाँ! इस दिल को अब यही तो समझाना है...

- Manvi Verma ©