Manvi Verma Raman   (Manvi Verma ©)
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Joined 6 July 2017


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2 JAN 2023 AT 20:07

ज़िंदा हैं हमसब क्यूंकि
ख्वाहिशें अभी तक
सांसें ले रही हैं...

सच!
इक मन का मर जाना
कितना कुछ बदल देता है...

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14 MAY 2022 AT 22:30

यूँही जो टांक लिए थे सितारे तुमने
बालों में अपने इक रात
और चाँद को सजा लिया था
गुलाब की तरह अपने जूड़े में...
क्या कहूँ!! आसमान खाली पड़ा है
अमावस खत्म नहीं हुई तबसे...

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22 APR 2022 AT 11:15

इक शख्स मुझे चाहता बहुत है
ये इश्क़ उसका मुझे भरमाता बहुत है

समझा नहीं पाती उसको मैं
या खुद ही घुल रही हूँ उसमें
ये ख़याल मुझे सताता बहुत है

कुछ पल में अपना बना ले
ऐसी शख्शियत का मालिक है वो
इसी बात से डरता है दिल
कि कभी कभी वो मुझे भाता बहुत है

डूब जाने को करता है कभी कभी
बातों में उसकी
अपनी बातों से वो मुझे
हर बार लुभाता बहुत है

अपने किसी दूसरे रिश्ते में होने का
डर मुझे सताता बहुत है
हाँ एक शख्स मुझे चाहता बहुत है!!

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19 APR 2022 AT 16:21

I breathe the coldness
of the starry night,
Moonless sky, yet shining bright
Just to bring alive my dying heart.
The aura once reminisced,
Now tearing me apart.
Desperately I search my soul
wildly running through my past.
Just to find myself
ripped & broken in the last.

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7 JAN 2022 AT 21:15

सुनो! चाँदनी चखी है क्या कभी तुमने?
ये ना होंठो पर लगते ही पिघल जाती है।
घुल जाती है पल भर में तुममें,
और समेट लेती है तुमको खुद में।

कहो! चखोगे चाँदनी?
क्योंकि मेरी बहुत बनती है चाँद से
और सबको ये मिलती नहीं।

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7 JAN 2022 AT 20:49

बह जाते हैं अश्क़ों की बाढ़ में हर रात
इन ख़्वाबों को मेरे तैरना नहीं आता...

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4 APR 2021 AT 21:07

आज डाकिये को गुज़रता देख पूछ लिया
मेरे ख़यालों के गांव से कोई ख़त आया है क्या?

कि मुद्दतें हुई दिल का हाल जाने!!

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21 OCT 2020 AT 22:19

सुनकर तारीफें उसकी खूबसूरती की कायनात भर में
चुपके से उतर आया है चाँद उसकी छत पर

घनी काली रात में भी दिन से ज्यादा उजाला है अब

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19 OCT 2020 AT 21:11

अख़बार के पन्नों सी हो गई है ज़िंदगी
ये केवल इश्तेहारों से ही पटी रहती है

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19 OCT 2020 AT 13:36

खो गई हैं खुशियां वो, जो ढूंढ लेती थी मैं
ख़यालों को अपने लफ़्ज़ों में पिरो कर
लफ़्ज़ों का न मुनका मिल रहा मुझे
न ही ख़यालों को कोई शक्ल दे पा रही
अधूरापन सा लगता है चारों ओर मुझे
और ये हर्फ़ भी मुझे घेरकर बस घूरते हैं
साथ मिलकर ना ही कोई शब्द बनाते
ना ही कोई नई कहानी
बस मुँह मोड़कर बैठे हैं मुझसे
अब तो लगता है बरसों हो गए जैसे
पहले की तरह गप्पें लड़ाए उनसे
जाने कौन नया साथी मिल गया है उन्हें
जाने कब वापस वो मेरी गली आएँगे

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