ज़िंदा हैं हमसब क्यूंकि
ख्वाहिशें अभी तक
सांसें ले रही हैं...
सच!
इक मन का मर जाना
कितना कुछ बदल देता है...-
कुछ बातें सुनानी है..
ये जो ज़िन्दगी है;
चलती फिरती खूबसूरत कहानी है...
कु... read more
यूँही जो टांक लिए थे सितारे तुमने
बालों में अपने इक रात
और चाँद को सजा लिया था
गुलाब की तरह अपने जूड़े में...
क्या कहूँ!! आसमान खाली पड़ा है
अमावस खत्म नहीं हुई तबसे...-
इक शख्स मुझे चाहता बहुत है
ये इश्क़ उसका मुझे भरमाता बहुत है
समझा नहीं पाती उसको मैं
या खुद ही घुल रही हूँ उसमें
ये ख़याल मुझे सताता बहुत है
कुछ पल में अपना बना ले
ऐसी शख्शियत का मालिक है वो
इसी बात से डरता है दिल
कि कभी कभी वो मुझे भाता बहुत है
डूब जाने को करता है कभी कभी
बातों में उसकी
अपनी बातों से वो मुझे
हर बार लुभाता बहुत है
अपने किसी दूसरे रिश्ते में होने का
डर मुझे सताता बहुत है
हाँ एक शख्स मुझे चाहता बहुत है!!-
I breathe the coldness
of the starry night,
Moonless sky, yet shining bright
Just to bring alive my dying heart.
The aura once reminisced,
Now tearing me apart.
Desperately I search my soul
wildly running through my past.
Just to find myself
ripped & broken in the last.-
बह जाते हैं अश्क़ों की बाढ़ में हर रात
इन ख़्वाबों को मेरे तैरना नहीं आता...-
बादल ने जब सफ़र शुरू किया था अपना,
तब ये बूंदे नवजात थी...
एक माँ की तरह बड़े आराम से
सम्भाल कर चला था ये अपने सफर पर..
आज उन नन्हीं बूंदों को ढ़ोते-ढ़ोते,
ये मेरे शहर पहुँचा है...
पर इस बीच वो सारी नन्हीं बूंदे
बड़ी हो गई...
और उनको पर लग गए जैसे..
उस आसमानी दुनिया को छोड़,
अब उन्हें एक नई दुनिया देखनी थी...
सो वो बरस पड़े एकसाथ मेरे शहर में,
सरोबार कर गए सब कुछ...
बादल अब फिर से अकेला हो गया,
कुछ देर खामोशी से देखता रहा
उन बूंदों को,
फिर हँस कर एक नई जगह को चल पड़ा...
आखिर एक माँ के लिए बच्चों की
खुशी से ज्यादा,
कुछ और होता ही नहीं...-
उस ड्योढ़ी पर कदम रखो ज़रा, फिर कहना
क्या तुम्हें कुछ अपना से नहीं लगता!!!
वो फूल, पेड़ पौधे जो हर वक़्त
राह तकते थे तुम्हारी,
उनके पास क्या कभी दो पल;
वक़्त गुज़ारा है तुमने...
वो आँगन जहाँ बचपन गुज़रा तुम्हारा,
वो जहाँ तुमने चलना सीखा,
आज तुम्हारी कदमों की;
आहट के एहसास को भी तरस गया है...
क्या इतने मसरूफ़ हो गए हो,
जो इन गलियों की तरफ़ इक नज़र;
देखना भी तुम्हें गंवारा नहीं...
कभी पलट के देखो इन यादों को भी,
ये तुम्हें इस भाग-दौड़ से इतर,
दिली सुकूं ही दे जाएंगे...
कभी आ जाओ अपनी जन्मभूमि को भी,
अपना थोड़ा कीमती वक़्त देते जाओ...-
चाँद भी कश लगाता है क्या तुम्हारे प्यार का,
धुआँ-धुआँ से रहता है वो हर तरफ से...
आजकल रोशनी नहीं आती उसकी मेरी खिड़की पर।-
वो पहली बारिश,
वो भीगा अफ़साना,
वो चाय की चुस्की,
वो हमारा घंटों बतियाना,
वो इश्क का दौर सुनहरा,
वो हमारा आशिक हो जाना..
अब न है वो बारिश पहले सी,
न है वो दौर सुहाना..
हमारे लिये तो बस है,
वो गुजरा ज़माना...
-
सुनो! चाँदनी चखी है क्या कभी तुमने?
ये ना होंठो पर लगते ही पिघल जाती है।
घुल जाती है पल भर में तुममें,
और समेट लेती है तुमको खुद में।
कहो! चखोगे चाँदनी?
क्योंकि मेरी बहुत बनती है चाँद से
और सबको ये मिलती नहीं।-