Manvendra Sharma   (मुसाफ़िर)
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Joined 21 June 2020


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Joined 21 June 2020
27 NOV 2021 AT 16:10

उससे जुदा होकर तड़प रहे हैं
कोई मेरा गम मिटा दे,
हो गया है चारों तरफ अंधेरा
कोई मुझे रास्ता बता दे।

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23 JUL 2021 AT 21:12

आजाद
आजाद हूं हमेशा आजाद रहूं
विद्रोही बन अंग्रेजों से लड़ूं
पिता हैं स्वतंत्रता,जेल है पता
नाम अपना आजाद बताऊं
देश के लिए मिट जाऊं
खुद को अज्ञात रखूं
काकोरी काण्ड कर धन जुटाऊं
अपने अधिकार के लिए हथियार उठाऊं
गुलामी छोड़ मौत को चुनूं
देश के लिए मिसाल बनूं

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20 JUN 2021 AT 17:26

पिता
पिता है घर की वृक्ष
हम सब हैं उसकी शाखा
हैं घर की वो परछाई
जहां है अपनी दुनिया समाई
हर इच्छा करते पूरी
भले हो कितनी भी मजबूरी
काम काज मेहनत करते भरपूर
की बच्चा न हो किसी के लिए मजबूर
पिता का साया है
हर बच्चे की आवश्यकता
बिना बोले कर देते पूरी इच्छा
यही है पिता की विशेषता
खुद नही हो भले कामयाब
बच्चे को बनाना चाहते हैं नवाब
क्योंकि वो दिन उन्होंने ही देखें हैं
जब न था उनके पास कोई कामकाज
तुम देखते हो सपने
पिता करता है उसे पूरा
इच्छा पूरी करने में लग जाता
लगा देता जीवन सारा
जो हैं हम पर कुर्बान
उन्हें करता हूं मैं प्रणाम।।

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13 MAY 2021 AT 18:31

न हुए उसके दीदार
उसके लिए बेकरार भी हैं,
एक तरफा था प्यार
इसलिए उसका इंतजार भी है।

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12 MAY 2021 AT 17:51

अपनी बातों को लेकर गए उसके दरवाजे पर
उसे हमसे कोई तकरार था,
बात बस इतनी सी थी
की वो एक तरफा प्यार था।

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9 MAY 2021 AT 9:52

मां
जिसने कराया प्रकृति से परिचय
मां ही है जो है विश्व विजय
गोद में खिलाया बहुत प्यार किया
अपनी ममता से उद्धार किया
नही जताती अपना कोई एहसान
सब बच्चों को मानती एक समान
हमें नही कोई जानता
है उसी से हमारी पहचान
हो मां की साथ दुआएं
मिल जाता है सारा जहान
जिसने धूल मे सने बच्चे को उठाया
न देखी कोई गंदगी
उसके लिए वो बच्चा भी है प्यारा
भले की हो शरारत यदि
दिन भर करती मेहनत सबकी सेवा में
न थकती है वो सबके लिए काम करने में
हमें खिलाया भले खुद भूखी रही
अंत में ही खाया भले रोटी सुखी रही
मां से बड़ा कोई दूजा नहीं है
मां की सेवा से बड़ा कोई पूजा नहीं है

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20 APR 2021 AT 9:57

तन्हाई का आलम ये हो गया है
इश्क में सब बेअसर हो गया है,
उसे ख्वाबों में ही देखा है पाने की तमन्ना है
पर मोहब्बत में चोट खाना अलग खेल हो गया है।

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27 MAR 2021 AT 22:16

वो किसी और का हाथ थाम कर
हमें तन्हा कर गए,
जख्मों पर ऐसा छिड़का नमक
की डोली भी हमारी गली से ले गए|

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24 MAR 2021 AT 14:22

आरजू थी उसे पाने की
अब वो भी न रही
दुनिया से उसका परिचय कराना ही नही था
लेकिन क्या ही करें
झूठी मुस्कान और आंसू वो राज़ बयां कर रहे हैं

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22 MAR 2021 AT 9:57

चाहा था तुझे ,अब न कोई हक जता रहे हैं,
लोग फिर भी तुझे मेरे नाम से बुला रहे हैं।

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