समय के साथ अलग करने पड़ते हैं ख़ुद से , ख़ुद के ही कुछ हिस्से.. वरना सड़ जाता है वो हिस्सा और खा जाता है समूचे शरीर को, न जन्म लेने देता है नए हिस्सों को .. न बनने देता है नए किस्सों को ..
न जाने वो कौन है मुझमें .. जो मेरे बिखरे सुरों को साज़ देता है, मेरी ख़ामोश ख्वाहिशों को आवाज़ देता है, वो दिखता है कुछ मेरी ही छाया जैसा.. जो मेरे पंखों को परवाज़ देता है