Manu Anand   (Padkosh)
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हो लिखने की जब चाह लिखते हैं,
हां हम वक्त से बेपरवाह लिखते हैं।
Joined 19 August 2022


हो लिखने की जब चाह लिखते हैं,
हां हम वक्त से बेपरवाह लिखते हैं।
Joined 19 August 2022
25 APR AT 15:53

जो जीव है, जो वन है।
'जन रे!' तो जीवन है।।

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25 APR AT 12:21

'तन रे!' तेरी तृष्णा, तो तोड़े तिथिवार।
तबियत तरे तागड़ी, तभी तपे तलवार।।

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24 APR AT 19:55

'मन रे!' बड़ा बावला, पूछे कई कई नाम।
जो नाम सुमिरन नहीं, उसका सारा काम।।

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24 APR AT 11:43

'मन रे!' पिंजरा पंछी में, उड़ा उड़ूं उड़ी ना जाए।
उड़ उड़ उड़िकां तेरियां, मन 'मैं' मुक्ति को पाए।।

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24 APR AT 9:24

'मन रे!' ऐसा पंछी भया, निस दिन बदरे डाल।
एक घोंसला बना नहीं, दुजे को चले संभाल।।

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23 APR AT 19:48

अनमोल इसकी कीमत।
संभाल कर रखो इसको,
छल से न हो जाए दूषित।।

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23 APR AT 19:38

'मन रे!' तेरी चाल तो, देखे न तिथि वार।
चल न भेड़ चाल को, कर जमघट पार।।

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23 APR AT 18:58

नाटक के हर जर्रे को।
कोई जड़ हैं कोई ज़रिया है,
फाटक के हर फर्रे को।।

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23 APR AT 12:16

'मन रे' पढ़ा पंछी पिंजरे का, बाहर न भरी उड़ान।
चील बाज़ सब ही खाएंगे, तबही छूटा आसमान।।

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22 APR AT 21:20

यादों में फरियाद!
जरा ज़रा
जरा ज़रा झूउउऊम!
शाकालाका
लाका लाका लाका
शाकालाका बूह्म बूह्म!

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