Manu Anand   (Padkosh)
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हो लिखने की जब चाह लिखते हैं,
हां हम वक्त से बेपरवाह लिखते हैं।
Joined 19 August 2022


हो लिखने की जब चाह लिखते हैं,
हां हम वक्त से बेपरवाह लिखते हैं।
Joined 19 August 2022
13 FEB AT 12:44

डाटा पी रहे
हो होश में तो जानो
कैसे जी रहे

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6 FEB AT 1:33

एक वृत्त के कईं छोर,
कुछ हैं इधर, कुछ उस ओर।
केंद्र बिन्दू से विलग हो,
ढूंढे अपना-अपना भोर।।

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30 JAN AT 8:49

रुके हुए आँसू आँखों में दर्द बन जाते हैं।
छुपे हुए जज़्बात जान के मर्द बन जाते हैं।।

रुके हुए आँसू आँखों में गर्द बन जाते हैं।
छुपे हुए जज़्बात जान के सर्द बन जाते हैं।।

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24 JAN AT 14:00

"मैं" की दुनिया में, "मैं" एक है,
उसके अतिरिक्त सब कुछ "मैं" नहीं है।

"तुम" की दुनिया में, "मैं" दो हो जाते हैं,
कुछ "तुम" तो कुछ "मैं" नहीं हैं।

"हम" की दुनिया में, कुछ "हम" हैं,
कुछ "तुम" हैं, "मैं" जैसा कुछ नहीं है।।

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22 JAN AT 16:41

क़ुदरत की ख़ैर ज़रूरी है।
जुड़ो सच से तो मत रोना,
बस झूठ से बैर ज़रूरी है।।

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16 JAN AT 14:29

तेरा मुस्कुराना कब तक।
जुड़ो तो मिल जाएं मंज़िलें,
आखिर ये ज़माना कब तक।।

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14 JAN AT 8:07

नये घर के,
सारे ही,
रीति-रिवाज़ जानती है।
कल की सास,
होकर बहु,
आज जानती है।।

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14 JAN AT 7:44

पितृसत्ता का नशा नहीं मातृत्वता की छाया है।
जिस भी घर ने अपनी बहु को बेटी बनाया है।।

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12 JAN AT 12:08

अतिथि करें बिनती हज़ार,
तो वृष ना समझना।
दो दाने चावल भी खा ले,
तो कृष्ण ना समझना।।

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6 JAN AT 4:32

रौशनी के जितने क़रीब,
उतना बड़ा साया तुम्हारा।
आधार मिले तब पीछे,
दिख जाए परछाया तुम्हारा।।

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