Mansi singh   (मानsi सिंgh)
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ख़ामोशियों की शौकीन
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प्रकृति के करीब ♥️
Joined 20 November 2020


ख़ामोशियों की शौकीन
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प्रकृति के करीब ♥️
Joined 20 November 2020
5 MAY AT 0:10

तुम्हारा मेरी ज़िंदगी में होना,मुझे इंसान बनाये रखता है।
वरना, गुस्सा तो मुझे, जानवरों वाला आता है।😈

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18 JAN AT 17:27

आसानी से समझ आ जाऊं
इतना भी सरल नहीं हूँ, मैं ।

दिखने में काफ़ी सीधा हूँ,
किंतु किरदार, बड़ा उलझा हूँ, मैं।

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17 JAN AT 13:39

अब तुम्हें लौट जाना चाहिए
अपने पास...
जाने वाले कभी वापिस नहीं आते।

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14 JAN AT 13:10

"मैं" से "हम" तक का सफ़र
ये तुम हो
मुझमें आहिस्ता–आहिस्ता
किसी दरख़्त की छाँव से
सुकून के कतरे लिए।

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11 JAN AT 22:30

ख़ुद को कोसते रहते हो
लोग कहते हैं तुम बुरे हो
यह बात तुम मान लो
उनके लफ़्ज़ों को
अपने कर्मों से तुम बांध लो
बेवजह दर्द देते हो ख़ुद को
इन चिंताओं को अब विराम दो।

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10 JAN AT 22:11

बंद कमरों से
खुले आसमान की तरफ भागता हूँ
बढ़ती हुई धड़कनों की डोर मैं थामता हूँ
साँसे थम सी जाती हैं
मैं अश्कों से कुछ पल की पनाह मांगता हूँ।

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8 JAN AT 23:50

जो कहीं नहीं पहुंचे
अंततः वही स्वयं तक पहुंचे ।
भीड़ के बिछड़े
शून्य तक पहुंचे।

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7 JAN AT 18:43




जब कोई मुझसे कहता है,
"खुश रहा करो"
मैं चाहती हूँ उससे सब कह दूं
किंतु, हृदय में हल्की सी चुभन
आँखों में उमड़ता सैलाब
और लबों पर मुस्कुराहट
एक डर
ख़ुद को मजबूत दिखाने का
सारे लफ़्ज़ों को ख़ामोश कर देते हैं ।

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14 DEC 2024 AT 8:25

कभी –कभी
रोना आता है,
बेहिसाब रोना आता है,
लेकिन आंसू नहीं आते।

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13 DEC 2024 AT 13:46

जब मैं घर से निकलता हूँ,
बन्द दरवाज़े को देखता हूँ,
तब घर याद आता है।
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जब देर रात लौटता हूँ,
अपनी आवाज़ का उत्तर,
ख़ामोशी में पाता हूँ,
तब घर याद आता है।
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जब बिखरे हुए घर को देखता हूँ,
मरहमों को अश्कों से धोता हूँ,
तब घर याद आता है।
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और शायद...
”माँ " याद आती है।

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