लिखी है हाथो मे वह शायद मेरी किसम्त नहीं
चंद लकीरो के सामने झुक जाऊ ये मेरी फितरत नहीं
कविताओं मे कालखंडो मे समा जाऊ
चंद पन्नो मे इतनी हिम्मत नही
ना पार कर सकू ऐसा कोई पर्वत शिखर नही
लिखी है हाथो मे वह शायद मेरी किस्मत नही
रूक जाऊ कहने पे किसी के
इतनी भी हमे मोहबत नहीं
लिखी है हाथो मे वह शायद मेरी किसम्त नही
चंद लकीरो के सामने झुंक जाऊ ऐसी मेरी फितरत नही
~ Dr. Geetendra singh
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