मैं उस दीये की बाती ना जो महज अंधेरा हटा सके
मैं सूर्यवंश की वंशज हूँ सूरज से नजरें मिला सकूँ।।
मैं वो ढलती शाम नहीं जो दफन अंधेरे मे हो जा
वीरों के चित् की ज्वाला हूँ दुश्मन की नींदे उड़ा सकूँ।।
मैं नहीं अचल तालाबों सी जो जैसे तैसे रह जाए
गंगा की बहती धारा हूँ जो जग से तम को मिटा सकूँ।।
ख्वाब नहीं मेरे की मैं घर में सिमट के रह जाऊँ
भारत माँ की बेटी हूँ इतिहास में पन्ने छपा सकूँ।।
मैं वो बुझी अंगार नहीं जो मन की मन में रख जाए
मैं तो गिरती बौछार सी हूँ धरती को पावन बना सकूँ।।
मैं नहीं कोई सीधी प्रतिमा जो हर पल मीठा कह पाए
मैं तीखी तलवार सी हूँ झूठे को झूठा बता सकूँ।।
मैं नहीं अहिंसा की मूरत जो मौन धरे सब सह जाए
मैं द्रोपदी के चितकार सी हूँ कौरव के कुल को मिटा सकूँ।।
ना गांधारी सा तेज धरी पट्टी बांधे पीछे चल जाऊं
मैं जीवन के प्रतिकार सी हूँ भटके को रास्ता दिखा सकूँ।।
मैं सूर्यवंश की वंशज हूँ सूरज से नजरे मिला सकूँ।।।
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