वो लम्हे वो सरारते वो बचपने याद आते हैं।
हा आज भी मुझे मेरे वो हसीन हमदर्द याद आते हैं।
टप्परी पर चाय पीने के लिए बैठ जाना आदत थी उन दिनों की,
जब भी उस गलियारे से निकलु तो मुझे वो चार दोस्त याद आते हैं।
लोग महफिले सजाने जाते थे, हम बैठे वहा महफिल सज जाती थी,
क्या कहुं यारो मुझे वो शायराना अंदाज वो जमाने याद आते हैं।
वो गीले सिकवे वो पहला प्यार वो स्कूल के खुबसूरत सालो की बात है,
जो खो गई हु आगे बढ़ने की राह में तो मुझे वो प्यारे से अफसाने याद आते हैं।
माना की जेब में उतने पैसे नही थे तो खर्च बाट लिया करते थे,
अब जब सब कुछ है तो इस कदर मुझे मेरे अनमोल नजराने याद आते हैं।
जो गम था उस वक्त पे तुम लोग भगा दिया करते थे चुटकियों में,
अब एक शिकन आती है तो, पागल है क्या कहके गले लगाने वाले कारवाए याद आते हैं।
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