जब सारे कपाट बंद कर दिए जायेंगे तुम्हारे लिए
तब तुम एक बड़ी सी मेहनत की हथौड़ी से अपने
घर की खिड़की को तोड़ कर वहां से निकल जाना
और एक नया रास्ता बनाना उन सभी लोगो को लिए
जो सोचते है की कपाट तो बंद हो गया अब क्या होगा
और अपने सपनों के परों को कुतर कर उसे लहूलुहान
छोड़ देते है उसी कमरे में तड़पता हुआ और फिर
एक दिन धीरे धीरे करके वो मर जाता है और जब
उसके लाश की बू बर्दाश्त से बाहर हो जाती है तब
उसी हथौड़े की मदद से उस खिड़की को तोड़कर
उस जगह से उसे बाहर फेंक देते है और दोबारा से उस
खिड़की को वापस से उसकी जगह लगा देते है और
किसी के कपाट खोलने का इंतजार करते हुऐ मर जाते हैं-
"पर मुझे लगता है की इन खानों और दीवारों को
भरने के लिए किताबें या फिर सपने नहीं
एक ठोस हकीक़त चाहिए
ऐसी हकीक़त जिसके बुनियाद पर
सारी किताबें और सपने लिखे जा सकें....."-
"कभी कभी मुझे यूं भी
ज़रा सा निहार लिया करो
लग जाती है ज़माने की नजर
तुम माथा चूम उतार दिया करो ..... "-
"उदासी कोई मज़ाक नहीं है
आप मर जाते है दिल से
छोड़ देते है सोचना दिमाग से
और भूल जाते है महसूस करना
उदासी कोई मज़ाक नहीं है ...."-
मैं अपनी कहानी में तुम्हें
मेरे दुनिया की पहली और आखिरी
मिलने वाली खुशी लिखूंगी-
"स्वर्ण मयूरी ना आवेगी
कोयलिया अब ना गावेगी
काहे को भरम में बैठे हो
कौन सी बात पर ऐंठे हो......."-
"कभी देर सवेर अपने
घर के दरीचे पर जाना
मैं वहीं मिलूंगी तुम्हें
ठीक छोटे से गमले में
उगती हुई बेल की तरह
जो कभी कभी इमारत
तक पहुंच जाती है...."-
आ जाती है कभी कभी नींद
मगर फिर आधी रात में
जब दर्द बहुत बढ़ जाता है
तब वो भी चली जाती है
मुझे लगता है नींद भी
उसी का साथ देती है जो
दर्द में नहीं होता, ये भी
लोगों की ही तरह है-
बे-नियाज़ी विरासत है तुम्हारी
जो धुंध की तरह
फैली है चारों तरफ
क्या तुम इससे फिर
ख़ुद को निकाल पाओगे
क्या तुम फिर से ख़ुद को
ख़ुद में ही ढाल पाओगे ?
वक़्त का शिकार हुए तुम
वक़्त के हाथों लाचार हुए तुम
कैसे अजीब हालात है तुम्हारे
जिस्म से तंदरुस्त और
दिल से बीमार हुए तुम
बेरंग हुई इस ज़िन्दगी में
क्या इश्क़ का रंग डाल पाओगे
क्या तुम फिर से ख़ुद को
ख़ुद में ही ढाल पाओगे ?-