फूल मरै,,
पै मरै न बासू...-
Manoj Swarnkar
(मनोज स्वर्णकार)
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जो भी लिखता हूं "दिल" से लिखता हूं
कुछ लम्हों के लिए ही सही
द़िमाग को "ताख़" पर... read more
कुछ लम्हों के लिए ही सही
द़िमाग को "ताख़" पर... read more
Joined 16 July 2017
15 JUL 2022 AT 2:19
तेरी रहनुमाई का सौ-सौ बार शुक्रिया
महकती है मेरी रंगत तपिश-ए-हिज्र में तेरे-
17 AUG 2021 AT 4:12
रूठी हुई ख़्वाहिशों में थोड़ी सी सुलह लेके
आया तू ख़ामोशियों में बातों की ज़िरह लेके
खोया था समंदरो में तन्हाँ सफ़ीना मेरा
साहिलों पे आया है तू जाने किस तरह लेके-
31 DEC 2021 AT 23:56
इधर-उधर खोजा फ़िर ख़ुद में खो गया
तेरा मुझमे इस कदर होना लाजवाब है-
8 AUG 2021 AT 22:11
जहाँ भी ज़िक्र हुआ रूहें सुकून का
वही तेरे रब्त के तलबग़ार हो गये-
6 AUG 2021 AT 23:11
कभी-कुछ तो कभी-कुछ तो कभी-कुछ
उसके फितूर का फितूरी हैं कभी-कुछ तो कभी-कुछ तो कभी-कुछ-
1 AUG 2021 AT 19:30
मैं लोगों से मुलाक़ातों के लम्हें याद रखता हूँ
मैं बाते भूल भी जाऊँ तो लहजे याद रखता हूँ
जरा सा हटके चलता हूँ ज़माने की रवायत से
मैं जिनपे बोझ डालूं वो कांधे याद रखता हूँ
#unknown-