Manoj Srivastava   (मनोज श्रीवास्तव 'अनाम')
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Joined 6 June 2021


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8 MAY AT 13:44

एक दोपहर
अमीर मालिक ने
गरीब नौकर से
यूँ ही पूछ लिया
रमुवा ! तेरी शादी नहीं हुई
पर तू यह बता !
किस करने में
मेहनत लगती है,
या मजा आता है ?
नौकर बोला, साहब !
जरुर मजा आता होगा
मेहनत का काम होता
तो यह काम भी
हम से न करवाते ?

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3 MAY AT 11:20

नादाँ लड़की!!!
कुछ भी मुश्किल नहीं
अगर काँच को काँच
और हीरे को हीरा--
समझ सकने में भूल नहीं हुई है
लहरों की अतल गहराई में
जाना ही क्यों?
साहिल पर रेत के घर
बनाना ही क्यों?
ऐसी यादों को जो रुलाती हैं
जमींदोज कर एक पौधा
नेह का रोप दो
जिसके नवाँकुर की तरह
हृदय में प्रस्फुटित होगा प्रेम
उसकी छाया की शीतलता
और तुम्हारी स्निग्ध आँखों में
मुझे दीखता है अपना संसार
तुम्हारी अल्कों की श्यामलता में
टंके तारों की घनी छाँव
बन जाये सदा सर्वदा मेरी ठाँव
जहाँ हम जी सकें जन्म जन्मांतर
मेरी आकुल बाँहें रहीं पुकार
जहाँ तुम्हारा सदा स्वागत है।
प्यारी लड़की!!!

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1 MAY AT 19:03

कोई मुद्दतों तक रहा तन्हा - तन्हा!
और तुमसे न दो घड़ी इंतज़ार हुआ।

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1 MAY AT 18:54

अरसे वक़्त तक 'अनाम' तेरे इंतज़ार में रहा।
न ख़ुद आए न किसी और को आने दिया।।

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1 MAY AT 18:49

मेरी बस्ती में जाने कैसे लोग आए।
न ख़ुद रहे और न मुझे रहने दिया।।

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1 MAY AT 18:46

जब भारत देश था गुलाम
तब इसकी जनता थी आम
विदेशियों के लिए
चूसो और स्वाद लो
निचोड़ो फिर फेंक दो
देशवासियों के लिए
हम सब भारत की संतान
लाठी-गोली खायेंगे सीना तान
फिर हुआ भारत आज़ाद
आम जन हो गये बर्बाद
कुछ खास हो गये आबा़द
उनकी बातें जमीनी
वायदे हवाई, यादें स्वप्नीली
सिद्धांत सब बेबुनियाद
फेंकी गयी गुठलियाँ
जो दबी पड़ी थी
उनमें फूटे कुछ कल्ले
कुछ होनहार भी निकले
वे भोग चुके थे
आम होने का सुख
उनमें टीसें मार रहा था
खास न हो पाने का दु:ख
चाहिए उनको सत्ता में हिस्सेदारी
देश के प्रति बनती है
कुछ उनकी भी जिम्मेदारी
उनका फैसला है
हम साथ-साथ आयेंगे
राष्ट्रहित में मिलजुल
गठबंधन सरकार चलायेंगे
सभी बनेंगे शासन के अंग
बार-बार लायेंगे राजग-संप्रग
आम की आम रहेगी
हमारे देश की जनता
इस तरह कायम होगी
सामाजिक समरसता।

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24 APR AT 20:12

कब तुमने शृंगार किया था
कब दर्पण में मुख देखा था
जीवन की विकल तृषा में
तो ही तुमने सुख देखा था।
यह सावन आकांक्षित है!!
एक युग से मुझे प्रतीक्षित है
तुम बन कर बरखा आओ
अब हृदय अति उल्लसित है
रिमझिम फुहार सी बरसो
मेरे अंतर्मन में तुम हरसो।
कह दो सब मन की आशा
न हृदय रहे अपना प्यासा।।

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22 APR AT 19:03

बिल्कुल अलग हैं हम-तुम
पर कुछ मिलता जुलता है
एक सी है, हमारी दास्ताँ-
एक से ख्वाब औ ख्वाहिशें
दोनों की उम्मीदें और सपने
जाने क्यों लगते हैं अब अपने
हमारे दिल का झरोखा
प्यार की दश्त पर खुलता है
और शाम की कॉफी
साथ में आधी-आधी
पीने को मन करता है
अब दो अलग-अलग शहरों को
एक करने को दिल करता है।

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21 APR AT 17:10

कुछ नादानी ही सही
पर मेरा दिल चाहता है
कि छिड़क दूँ नींद की
कुछ बूँदें तुम्हारे चेहरे पर,

मेरी बातों या ख्वाहिशों
पर क्यों नाराज़ होती तुम
मैंने तो अक्सर तुम्हें भी
ख़्यालों में मुस्कुराते देखा है।

नींद में तुम्हारी खूबसूरती
को मुकम्मल निहारते हुए
अपने दिल के साथ तुम्हारे
दिल को धड़कते पाया है।

सैकड़ों मील दूर रह कर
हर वक़्त मेरी आँखों में
एक ही अक्स उभरता है
जो दिल की राहों चल कर

लफ़्ज़ों की मार्फ़त अनाम
कोरे कागज पर उतरता है।

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20 APR AT 13:18

तुम्हें प्यार होना मुश्किल है
यह मैं जानता हूँ।
किसी को दिल में रख पाना
मुश्किल मानता हूँ।
इस दो पल के दौर में अनाम
कुछ तलाशता हूँ।
तुम्हारे साथ सौ जन्म की प्रीत
निभाना चाहता हूँ।
चेहरे से आगे जो दिल देखा
उसे ही माँगता हूँ।
प्यार तुमसे हुआ कि तुम में
ख़ुदी को देखता हूँ।
तुम्हारे एहसास में डूबा हुआ
हर वक़्त पाता हूँ।
अपनी धड़कनों को सुना करो
मैं उसमें गाता हूँ।
तुम्हारे इश्क़ की स्याही लेकर
मैं कलम चलाता हूँ।
दर्द धोखे के दौर से निकलो भी
नया जहाँ बसाता हूँ।
कभी अंतर्मन में झांक कर देखो
रूह की धूप बिखराता हूँ।

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