ज़िन्दगी में क्या चल रहा है क्या बताएं,
किसी से रूठ कर किसी को मनाना है क्या बताएं,
अचानक चढ़ गया एक खुमार नया नया,
मदहोशी है मगर राज़ क्या बताएं,
हम जो शौकीन थे महफिलों के,
अब सन्नाटों में रह रहे हैं,
कोई पुछे क्या हुआ, कारण क्या है
उन्हें तबियत से इश्क बताएं,-
ढूंढ रहा हूं खुद को इन किताबों में कहीं
शायद कोई किरदार मिल जाए मुझको मुझ सा कहीं।-
बेहतर था जब तुमसे सिर्फ बातें हुआ करती थी
अब शिकायतें होने लग गई हैं।-
इश्क की पुकार नहीं
तुम कुछ खास लिखो,
किस्से मोहब्बत के छोड़ो
गरीबों के अधिकार लिखो,
कांप उठे ज़र्रा ज़र्रा सत्ता का
तुम शब्दों में जनता की आवाज लिखो,
उठाओ इक मशाल क्रान्ति की
तुम शब्दों में बदलाव लिखो,
इश्क की पुकार नहीं
तुम कुछ खास लिखो।-
ज़िन्दगी के खेल में, मैं रोज लड़ रहा हूं
मैं रोज जी रहा हूं मैं रोज मर रहा हूं।-
अक्सर लोगों से दूर जाने की फिराक में रहता हूं
यूं ही नहीं मैं आवारा कहलाता हूं।-
खुद के किस्सों को ताजा कर रहा हूं
कलम उठा कर पन्ने को गीला कर रहा हूं।-
कोई कुछ तो गुनगुना रहा है
शायद कोई उदास गीत गा रहा है,
दिल को बहलाते-बहलाते
कोई पुराने किस्सों को याद कर रहा है,
किस कदर फना हुआ था वो मोहब्बत में
बस उन दिनों को कोस रहा है,
पहले जो सिर्फ संगीत को सुना करता था
अब वो गानों के बोल याद कर रहा है।
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यूं ही तो लोग किसी को बदनाम नहीं करते ऐ जिन्दगी
कुछ तो खता तेरी भी रही होगी।-