कुछ बच्चों की मुस्कुराहटें मोहताज है
आपके जरा से सहारे की ।।-
शहर में रहकर ,अमीर हो गये
वो गाँव आना भूल गये
आते है कभी कभार तो
बड़ी सी गाड़ी में
अक्सर घर आना ही भूल गये
वो बचपन भी अपना भूल गये
जब चूल्हे की रोटी पर बिलख पड़ते थे
अपनी पानी की बोतल, सडवीच साथ मे
वो पेड़ो से अमिया तोड़ना भी भूल गये
आते वक्त शिकायत की होंगी, टायर से उड़ती रेत की
सैकड़ो कमी निकाली होगी गाँव की
क्या रेत में कबड्डी के पाले भी भूल गये?
घर मे एक बूढ़ी दादी
खाट से चिपकी पड़ी होगी
अपना नाक दबाना याद रहा
वो पाँव छूना भूल गये,
नंगे पांव भरी दोपहर
गाँव भर जो नाप लेते
ऐसी गर्मी लगी, ऐसी की गाड़ी में विराजे
नीम की छांव भूल गये
कौन जायेगा मास्टर जी के जनाज़े में?
वो तो गाँव की पाठशाला तक भूल गये ।।
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खाकर झूठा फेंकना क्या खूब है?
क्योंकि तुम्हारा व्यर्थ किसी की भूख है ।।-
दर्द मेरी बातों में हो
जैसे प्यास समंदर की आंखों में हो
वो यूँ करीब है मेरे
जैसे कि बाहों में हो
नींदों का टूटना क्या नया है
सब हासिल जैसे ख्वाबों में हो ।।-
वतन के नाम पर हर कोई तो मरता नही
क्योंकि हर किसी मे इतना जिगर तो होता नही
माँ अपने कलेजे का टुकड़ा खो देती है
भाई अपनी भुजाओं का बल खो देता है
बहन कलाई खो देती है
पिता परवरिस खो देता है
और पत्नी ख्वाब खो देती है।।
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सासे तो जिस्म को जिंदा रखती है
रूह तो तेरे इश्क़ के सहारे जिंदा है ।।-