सुकृतं दुष्कृतञ्चैव गच्छन्तमनुगच्छति ।
यह अच्छे और बुरे कर्म हैं वे मृत्यु के बाद स्वयं के साथ होते हैं ।
It is one's good and evil actions that accompany oneself after death. — % &-
वनेsपि सिंहा मृगमांसभक्षिणो
बुभुक्षिता नैव तृणं चरन्ति ।
एवं कुलीना व्यसनाभिभूता
न नीचकर्माणि समाचरन्ति।।
जंगल में मांस खाने वाला शेर भूख लगने पर भी जिस तरह घास नहीं खाता, उसी तरह कुलीन (सुसंस्कारित) व्यक्ति संकट काल में भी नीच कर्म नहीं करते । — % &-
औचित्यचारुचरितं सहजं हि महात्मनाम् ।
एक महापुरुषों का उचित और आकर्षण ढंग से कार्य करना स्वाभाविक है।
It is natural for a great men to act befittingly & charmingly.
(रामायणमञ्जरी)— % &-
कल्पयति येन वृत्तिं येन च लोके प्रशस्यते सद्भि:।
स गुणस्तेन च गुणिना रक्ष्य: संवर्धनीयश्च ।।
जिस गुण से आजीविका का निर्वाह हो और जिसकी सभी प्रशंसा करते हों, अपने स्वयं के विकास के लिए उस गुण को बचाना और बढ़ाना चाहिए ।
The skill that sustains livelihood & which is praised by all should be fostered & protected for your own development.— % &-
नय सुपथा राये अस्मान् ।।
हमें समृद्धि और सौभाग्य के धर्म-मार्ग की ओर ले चलो ।
Lead us to righteous path for prosperity and fortunes.
(ऋग्वेद:- १.१८९.१)— % &-
राष्ट्रं मे शक्ति:, राष्ट्रं मे भक्ति:,
राष्ट्रं मे चेतना ।
राष्ट्र ही मेरी शक्ति है, राष्ट्र ही मेरी भक्ति है
और राष्ट्र ही मेरी चेतना है।-
यतेमहि स्वराज्ये ।।
हमें अपने देश की सेवा करनी चाहिए ।
We should serve in our country.
(ऋग्वेद:-५,६६,६)-
सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत् ।।
सन्तोष से बढ़ कर कोई धन नहीं है।
There is no better wealth than the contentment.-
प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागरा: ।
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेsपि न साधव: ।।
जिस सागर को हम इतना गम्भीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़ कर जल-थल एक कर देता है परन्तु श्रेष्ठ व्यक्ति संकटों का पहाड़ टूटने पर भी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते हैं । अतः साधु पुरुष सागर से भी महान होता है ।-