तुम्हारे अप्रिय व्यवहारों से यह प्रतीत हो चला है मुझको
ना मेरा वज़ूद बचा है ना अस्तित्व ना मैं जिंदा बचा पाया हूं तुममें खुदको ||
अब हालत यह हैं कि तुम्हारे मन के अंतर्द्वंद में झूल रहा हूं मैं निरर्थक ऐसे
सूखे पेड़ की कभी शाखाएं, टहनियां तो कभी समूचा पेड़ घर की जरूरतों पर जल रहा हो जैसे ||
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तुम घुल गयी हो मेरी सांसों में ऐसे
जैसे घुलती है पीने के बाद शराब ||
उसका नशा तो उतर गया कल शाम ही
तेरे नशे ने देख कर दी मेरी हालत ख़राब ||-
बेइंतहा प्यार करता हूं तुमसे
खाली ना जाउंगा यूं दर से ||
माना आज मुशिकल है गुफ़्तगू-ओ-दीदार
पर मर कहा जाउंगा मैं इस डर से ||-
यूं तो कई कसूरवार हैं मेरी मुसीबतों के,
पर तुम सारा इल्ज़ाम ना ख़ुद को दो ||
हजारों गलतीयां, लाखों ऐब हैं मुझमें,
मेरी मनहूस क़िस्मत का दाग़ ना खुद को दो ||
तरसाया कुछ कम नहीं है तुमने दिल को
मेरे ज़ख्मों का स्वाद ना तुम खुद को दो ||
अनचाहे मोहब्बत को इतना घसीटा है तुमने
अब इस ज़हर का काट ना खुद को दो ||
सबने चुन - चुन कर खाया है हर हिस्से को
दिल को तुम ना खा पाये तो वापस मुझको दो ||
ताउम्र गुज़ारी प्यासी प्यार के रेगिस्तान में मैंने
तुम भीगे रहे आगोश में ये नाद ना खुद को दो ||
यूं तो कई कसूरवार हैं मेरी मुसीबतों के,
पर तुम सारा इल्ज़ाम ना ख़ुद को दो ||
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ये दिन भर के काम से थके हारे लोग ||
ये अगले दिन सुबह दौड़ते भागते बेचारे लोग ||
ये पैसा की लालच में खुद ही को मारे लोग ||
कहो इनसे जरा ठहरे, उम्र यूं ना गुजारें लोग ||
ये दौलत ये बेबसी ये सपनों से हारे लोग ||
ये ख़ुद की लाशें ढोते शहर भर के बेसहारे लोग ||
कुछ मज़बूरी कुछ बुजदिली से लगे किनारे लोग ||
कहो इनसे जरा ठहरे, उम्र यूं ना गुजारें लोग ||
ये झूठे दानी और बेईमानी से चमके सितारे लोग ||
एक दूसरों को नोंच कर खाते और लगते प्यारे लोग ||
एक दोस्त की तलाश में गंवाए क़ीमती हज़ारे लोग ||
कहो इनसे जरा ठहरे, उम्र यूं ना गुजारें लोग ||
सुकूं की तलाश में निकले ना मिले फिर करारे लोग ||
अंधाधुंध दौड़ रहे भ्रम में मिलेंगे किसी मझधारे लोग ||
बैठे बात करे जो पल बीते ना आयेंगे पुकारे लोग ||
कहो इनसे जरा ठहरे, उम्र यूं ना गुजारें लोग ||-
कि जानता है तू तेरा चांद हूं मैं,
मुझे ये दामन पर दाग़ मंजूर है ||
मोहब्बत है बस इक तुझसे
इससे ज्यादा मेरा क्या कसूर है ||-
एक मेरा दिल है जो हर रोज़
तुमको खुश करने में जल रहा है ||
हैं मेरे जो सपने तुम्हारे साथ
उनको पूरा कोई और कर रहा है ||
चंद लम्हात मांगते हैं तुमसे हर बार
पर जिंदगी कोई और गुजर कर रहा है ||
तार - तार हो रही है खुशियां मेरी
अब तु भी मेरे ग़म पर हँस रहा है ||
तेरी ख़ातिर कितना गंवाया वक़्त क़ीमती
तू है व्यस्त इतना क्यों मुझको ख़ल रहा है ||
तड़पेगा एक दिन कराहेगा पागल की तरह
तू भी इसी दौर से गुजरेगा जिससे मैं गुज़र रहा है ||
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हो रहा है छलनी सीना ये दुःख मुझसे अब सहा न जाता ||
संध्या की पूजन बेला पर रोदन - क्रंदन क्यों है दिखलाता ||
घर की ओट में छिपकर विधाता कुटील मुसकान क्यों है मुसकाता ||
हो गई है अब मेरी शाम तुम मुझको अब चैन से सोने दो ||
कोलाहल से दूर हुआ हूं अब मुझको जी भर कर रोने दो ||
बेचैनी को समेटे घबराता हूं दिनभर मुझको रात को ढोने दो ||
एक ख्वाहिश ही पूरी ना कर पाए तुमको मेरा हठ ना सुहाता ||
हो रहा है छलनी सीना ये दुःख मुझसे अब सहा न जाता ||
वैभव विलास की चाह नहीं ना लालच स्वर्ण महलों की
ना चाहिए कोई झूठ की दुनियां ना चाहिए फौज बहरों की ||
उसकी बाहों के घेरे हो उसकी आँखों के पहरों हों
सौंप दो उसको ज़रा सा और वक़्त को कह दो ठहरे हों ||
हो पूरे अरमाँ सारे जो उसके साथ देखे वो सच और सुनहरे हों ||
बख्श दो ज़ख्मों से पीड़ाओं से मुक्त करो अब और दर्द ना सहा जाता ||
हो रहा है छलनी सीना ये दुःख मुझसे अब सहा न जाता ||-
है मौत का उत्सव मेरे सब नाचो रे मगन होकर ||
जो आया है वो जाएगा सब बांचो रे मगन होकर ||
है सुख तो दुःख भी आएगा ज्यादा अभिमान ना कर ||
जो दुःख सहे हैं तूने, तू उसको दूसरे को दान ना कर ||
विष हैं जो जीवन के वो पी रहा हूं मैं हर रोज़ जमकर ||
मर रहा हूं रोज़ पल पल जी रहा हूं मैं रोज़ जलकर ||
हूं शापित या अभिशापित या हूं मैं कोई हीन लश्कर ||
वेदना से हूं भरा या आत्मग्लानि से या हूं भरा मैं भ्रम कर ||
तुमको मुझसे क्या लेना - देना तुम रहो बेफ़िक्र होकर ||
है मौत का उत्सव मेरे सब नाचो रे मगन होकर ||
सदा रहा ताप सहता, कहता ना किसी से शरम कर ||
दफनाए सब दाग दिल के, अंधेरों में रहा सब सहन कर ||
जुझता हूं कर्म या कुकर्म से, धर्म या अधर्म कर ||
है निष्ठुर विधाता, या दुर्भाग्य मेरा जो भी हो अब रहम कर ||
मन मे वैराग्य भर हो निश्चिंत रहता पर व्याकुलता मुझको करती पसीने से तर ||
घबराहट से नाचता मन जैसे ढूँढता कस्तूरी मृग वन में होकर खुद से बेख़बर ||
पाना चाहता है उसको जो असाध्य है बिना जिये किसी पीड़ा के प्रहर ||
अनुभवों से ज्ञान मिला ज्ञान से मिली डगर चल पड़े हैं शून्य पर ||
है मौत का उत्सव मेरे सब नाचो रे मगन होकर ||
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क्या इतना तरसाओगे कि मुझे पागल कर जाओगे ||
मैं यूं ही मर जाउंगा या तुम मिलने भी आओगे ||
मैं घुटते रह जाउंगा और तुम सिसकियाँ भरवाओगे ||
मेरी बेचैनी को तुम कब तक दूर से देख मुस्काओगे ||
यादों में हुए अधमरे को और कब तक तड़पाओगे ||
क्या इतना तरसाओगे कि मुझे पागल कर जाओगे ||
आंखे थक चुकी हैं अब क्या पग पर घुटने टेकवाओगे ||
उम्र गुजारी है आस में अब क्या खाली हाथ लौटाओगे ||
जीना मुश्किल कर डाला है अब कब जहर पिलाओगे ||
बंधी है जो उम्मीद की डोर तोड़ोगे और मुझको जलाओगे ||
तुम्हारा दुःख खा रहा है मुझको तुम और कब तक सताओगे ||
क्या इतना तरसाओगे कि मुझे पागल कर जाओगे ||
जल - जल के बुझा था फिर भी आया पास तुम्हारे ||
दो पल का साथ दिया तुमने फिर लगा दिया किनारे ||
मनहूस था प्यार मेरे लिये ये जान ना सका तुम्हारे इशारे ||
कुछ देकर सब कुछ ले लोगे फ़िर जिंदगी भर भटकाओगे ||
ग़म में इसी मर जायेंगे और लोग फिर ये कहते हुए दफ़नायेंगे ||
इश्क़ में मरा है ये आशिक तेजस्वी सब लोग ना ऐसा कर पायेंगे ||-