Mannu Mehra   (MANISH MEHRA)
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Joined 27 January 2018


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Joined 27 January 2018
11 JUN 2021 AT 13:19

अब तुम्हरी हाँ में हाँ हम भी मिला रहे है,
यूँ सच कहकर बात को बिगाड़ो मत ।

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9 DEC 2020 AT 14:17

ये कैसा दौर आ गया है, जहाँ...
अकेले रहने के लिए भीड़ में जाना पड़ता है,
बंद कमरे में तो, एक शहर काटने को दौड़ता है.

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4 DEC 2020 AT 18:48

यूँ तो दिलकश है ये जमाना बहुत,
गर कोई तुझसा करीब आये तो बात कुछ और है l

कहने को तो ये ज़िंदगी गुलज़ार है बहुत,
गर इन साँसों में तेरा रंग भर जाये तो बात कुछ और है l

आज भी सिमटती है ये तस्वीर सीने से बहुत,
गर जो तू तस्वीर से निकल आये तो बात कुछ और है l

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21 NOV 2020 AT 16:07

जो कहते है की हमें गम नहीं किसी बात का,
ज़रा उनके घरो में जाकर देखो,
एक क़ैद-ऐ-ग़म है, जहा बस उन्ही की सियासत है,

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15 OCT 2020 AT 13:10

हज़ार बार टूट कर खिले है हम,
ये ज़िंदगी यूँ ही गुलज़ार नहीं,

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27 AUG 2020 AT 22:39

सब कुछ पूरा मगर अधूरा सा होता है,
जो होता है,
वो लेखक होता है.

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26 AUG 2020 AT 23:56

एक नया शहर ढूढ़ते ढूढ़ते,
तुझमे एक दुनिया बना ली.

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26 AUG 2020 AT 1:50

कभी कभी सोचता हूँ ज़िंदगी क्या है,
और फिर..... तुम नज़र आ जाते हो.

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15 JUL 2020 AT 12:56

हम कुछ यूँ भी उन्हें मना लिया करते है,
शाम होते ही एक कप चाय बना लिया करते हैं

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11 JUL 2020 AT 23:39

आज बैठे थे भरी महफ़िल में,
और हुआ यूँ...
हमें चार दीवारी के सिवा और कुछ ना दिखा.

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