कोरोना से पता नहीं
हम ऐसे ही मर जाएं
एक साल गुजरने आ गया
बिन तुमको गले लगाए ।-
मेरे इश्क़ पर जो तुम सवाल करते हो,
पहले ये बताओ खुद कितनों से प्यार करते हो ?-
कुछ तो अलग बात है तुममें " काशी "
औरों के तरह महज़ शहर नहीं तुम-
कि अब उनसें हमारी मुलाकात नहीं होती,
जज्बातों की आंखों से बात कँहा होती
कि घंटो लगाएँ अब फोन को कानों से
रातों मे वैसी अब, बात कँहा होती।
अच्छा था वो स्कूल वाला प्यार ही
अब प्यार मे वो, बात कँहा होती
टकरा जाऐ उनसें किसी मोड़ पर, यूहीं अनजाने मे
ऐसी दुघर्टना हमारे साथ कँहा होती।
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मंजिल थोड़ा चूक गया, बेशक
हौंसला अब भी बाकी है
कह दो चाँद से, ये अंजाम नही अपनी
अभी तो आखिरी उडान बाकी है।
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मेरे हिस्से की मिठाई, अपने "यार" को खिलाना
जन्मदिन है तुम्हारा, धूम-धाम से मनाना
फर्क नही पड़ता अब, मेरा वैसे ही तुमको
सबसे पहले "विश" कर के उठाना-
मेरी जिदंगी का ये किस्सा
है मुश्किलों मे मेरा हिस्सा
अंत मे जो हूँ मैं शिख़र पर
तो बन जाए ये कहानी भी,
एक हसीन किस्सा।
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