Manjula Shaah   (Manjula Shaah)
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A Poet in search of lost World
Joined 24 January 2017


A Poet in search of lost World
Joined 24 January 2017
13 MAR AT 12:10

रंगो का कारोबार चल पड़ा
धरा और आकाश भी ज़द में हैं
बसंत का रंग चोरी हो गया है
पतझड़ के रंग शोर मचाते हैं
बरसते हैं काले-नीले मेघ मगर
अब प्यास कहाँ बुझाते हैं
लू चलती है आग बरसाती है
कुम्हलाई सी हर शय नज़र आती है
लेकिन फागुन में जब कान्हा खेलें
राधा संग होली
फ़िज़ाओं में छा जाए रंगोत्सव  
परंपरा और संस्कृति के यही रंग भारत के
रंगोत्सव पर खूब खिलते हैं
हर दिल पर रंग जमाते हैं
मुरझाई हर शय में फिर से रंग भरते हैं
खूब खेलिए होली पर रंग
यही रंग हैं जो बेरंग हयात को नया रंग देते है

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8 MAR AT 13:05

एक नया आकाश और नयी दुनिया
आकाश में अनगिनत टिमटिमाते 'नए तारे'
एक तारा एक नयी दुनिया
हर तारे ने सजाई अपनी दुनिया
कहीं एकांत में उगते नए विचारों के फूल
कहीं कलम ने चुने राहों के शूल
किसी के अभिनय ने रच दी
एक आभासी दुनिया
एक तारे ने ढूंढ निकाली
एक नई गैलेक्सी
हाँ कहने का सुकून हर तारे पर
ना कहने की अपनी मर्ज़ी
बोल्ड स्टेप्स या नैरो वॉक
छोटी स्कर्ट या लम्बा कुर्ता
घर की किचन या स्पेस लैब
सबक भी मेरे जीत भी मेरी
मेरे फैसले मेरी दुनिया  

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21 FEB 2024 AT 21:00

काल की लहरों ने सोखे समंदर
जहाँ उठते हैं आज रेत के बवंडर 

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15 FEB 2024 AT 7:48

न बांधो मुझको
न कैद करो मुझको
मैं खुशबू हूँ
मैं रंगत हूँ
मैं अहसास हूँ
मैं दर्द हूँ
मैं ही दवा भी हूँ
मैं संगीत हूँ
मैं साज़ हूँ
मैं रोशनियों का पैरोकार
चांदनी में खिलता हूँ
बहारों में मुस्कुराता हूँ
खिज़ाओं में अश्क़ बहाता हूँ
ईर्ष्या के तारों में भी पलता हूँ
कभी शोला हूँ
कभी शबनम हूँ
मेरी तासीर तेरी ख़्वाहिश
गुलज़ार है हर शय मुझसे
मैं सृष्टि का आधार हूँ

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23 AUG 2023 AT 15:53

चाँद का हुस्न ज़मीन से है
धरती-चाँद का रिश्ता गहरा
कब से चाँद फ़लक पर तन्हा था
दूर से रिश्ते निभाता था
आज महताब से मिलने आए
प्रश्नों के अम्बार लगाए
चाँद के राज़ कितने गहरे
रातें खामोश क्यों इतनी
चांदनी में शीतलता क्यों इतनी
कितने सागर छुपा कर रखे
हवा क्या हमसे मिलती जुलती
मिट्टी में क्यों महक नई सी
बाहर उजाला भीतर घनघोर अँधेरा
आवाज़ों के बीहड़ से
चलो नीरवता का मेल कराएं
मामा तुमने जो पुए पकाए
आज वही हम जीमण आए

 

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28 FEB 2023 AT 19:41

एक झूठ
एक ख्वाब  
एक वहम
इनकी तस्दीक़ कौन करे
एक दर्द का दरिया था
सहरा से बहता था
अब सांसो में ज़ब्त है

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23 DEC 2022 AT 21:10

आँखे ना देख सकी अगर हकीकत
दिल के अहसास पर यक़ीन रख
ना खोल सके जुबां राज़ अगर
आँखों से दिल की गिरह तो समझ

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11 JUN 2022 AT 17:30

वक्त की रफ़्तार का आलम ना पूछ
लाशों के ढेर देखे दर्द के निशान गुम

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16 MAR 2022 AT 12:12

इससे पहले की बदलने लगे आँखों की रंगत
एक अच्छे इंसान से मुलाकात कर लीजिए
 

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10 MAR 2022 AT 11:58

एक खूबसूरत सपना था
मोगरे सा महकता
ता उम्र आँखों में सजता रहा
एक दिन ख़्वाब हकीकत बन गया
ख़्वाब की ताबीर के रंग मत पूछो
महकने को अब कुछ न था
सूखे ख्वाब के निशान बिखरे पड़े थे
क्या समेटते क्या सहेजते
एक कतरा महक का बाकी न था
बाग़बां की नौकरी गई
आँखों में बसता बग़ीचा बियाबान हो गया
 मंजुला



 

 

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