अलग-अलग होके भी सब साथ है
यही तो दोस्ती की सबसे निराली बात है
Happy Friendship day🎊🎊-
सारी दुनियां बदल जाती है मगर वो नहीं बदलता है,
इक दोस्त ही है जो हर परिस्थिति मे साथ चलता है।-
क्यूँ मेरे मुस्कुराने पर सवाल उठाते हो
मेरे ओंठों की हंसी देख
मुझे मेरे गम याद दिलाते हो
दफन कर दिया है जिन्हें सीने मे कहीं
उन यादों के तार बेवजह क्यों छेड़ जाते हो
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तुम सहज ग्राह्य
तुम सर्व प्रिय
तुम जीवन का आधार प्रिये
तुम आत्मश्लाघा भारत की
तुम सजी दाँवनी भाल प्रिये
तुम कविता में रस सी शामिल
तुम छंदो की हो प्राण सखी
तुम आख्यानों की जननी हो
तुम हर रचना मे रची बसी
तुमसे अनुदिन के काज चले
हिंदी तुम मेरी पहचान प्रिये
तुम सहज ग्राह्य...।।
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सहज भाव से जो
भारत के हर जन जन भाती है
वही राज भाषा है अपनी
जो हिंदी कहलाती है
हो कोई भी भाषा भाषी
सबमें घुल मिल जाती है
भाषाओं की क्यारी में यह
पाटल सी खिल जाती है।
हिंदी से ही मान मिला है
हिंदी ही पहचान बनी
एक सूत्र में बांधा इसने
हिंदी ही अभिमान बनी
जात पात का भेद न इसमें
सबका इससे नाता है
हिंदू मुस्मिल सिक्ख इसाई
प्रेम सभी में बाँटा है।
गर्व करे हर भारत वासी
हिंदी का सम्मान करे
करे प्रसारित इसको इतना
जग इसका गुणगान करे
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दर्द में मलहम से होते है दोस्त
अंधेरी रात के बाद सुबह की
पहली किरण से होते है दोस्त
जीवन का स्वाद फीका ही रह जाता
नमक से जरूरी होते हैं दोस्त
आँसुओं को गिरने से पहले ही
समझ जाते है कि मन उदास है
चेहरे की मुस्कान होते है दोस्त
उनका होना सूने आँगन में रंगोली सा है
ईश्वर का अनुपम उपहार होते है दोस्त
Happy Friendship Day to all of U
आप सभी खास है ,इसलिए तो मेरे पास है☺️☺️
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कुछ खयालात दिमाग में
खलबली मचा रहे है
मगर कविता मे ढलने से जाने क्यों कतरा रहे हैं
इक ग़जल भी अधूरी उदास बैठी है
क्योंकि मतले और मकते की आपस में
ठनी हुई है।
एक कहानी भी है जेहन में जाने कब से
उसके किरदार भी बिल्कुल सज धज कर है बैठे
मगर कलम ने उनको भी धोका दे दिया है
ज़रा और इंतजार करो ये फरमान दे दिया है
क्यों हर लिखनेवाले के जीवन में
ये अकाल आता है,
वो चाहता तो है लिखना बहुत कुछ
मगर लिख नहीं पता है।
मंजुला✍️
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कोई तो दर्द सीने मे लिए फिरते हैं
ये मुस्कुराते चेहरे
कि दिल धड़कना ही बंद कर देता है
सहते-सहते-
" माँ " होने के लिए माँ बनना आवश्यक नहीं है। हर उस व्यक्ति को जो मातृत्व के उस भाव को जीता है ,मतृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
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इससे बेहतर नशा कोई और नहीं
हाथ में आती है तो खत्म होते तक छूटती नहीं
खुशबू से ही इक सुरूर सा छा जाता है
नई की महक ही कमाल होती है
और जितनी पुरानी होती है
उतनी ही तेजी से दिमाग मे दस्तक देती है
जो तलब उठे तो कदम खुद- ब -खुद
इसकी ओर खिंचे चले जाते है
घंटो गुजर जाते है
वक्त का पता नहीं चलता
ये जो साथ हो तो किसी
और के साथ की जरूरत महसूस नहीं होती
अरे!अंगूर की बेटी तो बेवजह ही बदनाम है जनाब
एक मुकम्मल शाम कैसे गुजारनी हो कोई हमसे पूछे
हम कहेंगे डूबता सूरज , तन्हाई और हाथ में
बस एक अदद..
"किताब "
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