ज़िंदगी की तजुर्बे
ज़िंदगी के तज़ुरबे ना जाने क्या क्या सिखाते है,
अपनों की ही हक़ीक़तों से परदाफ़ाश कराते है।
कभी किसी को हिम्मत से लड़ना सिखाते है
तो कभी किसी को चुप रहकर दर्द सहना सिखाते है।
तजुरबें कभी किसी को मंजिलो को पाना सिखाते है
तो कभी किसी को मंजिलो के क़रीब होकर भी हारना सिखाते है।
कभी किसी की इज्जत करना सिखाते है
कभी किसी की इज्जत की धज्जियाँ उड़ाना सिखाते है।
लेकिन सच तो ये है दोस्त
की तजुरबे तो लोगो के अंदर छिपे हुए जज़्बात है,
जो लोगो को मदहोशीं में रहना सिखाते है।
मन का विवेक-
रात के आग़ोश में
मदहोश थी मैं,
आँखे कुछ नम थी।
रात के आग़ोश में
कुछ पुरानी यादों कि
झिलमिलाती बूँदे थी।
गालों को छूती हुई
लहलहाती हवा थी।
पलकों पर सजी
कुछ औंस की शमा थी।
रात के आग़ोश में
एक अनजाना साया था।
क़रीब आने पर जान पड़ा
वह कोई रिश्ता पुराना था।
मन का विवेक-
समुंदर की गहराई को आँकते आँकते,
ना जाने कौनसा मोती ढूँढने चल दिए ।
फिर समझ आया,
जीवन के मोती को एक सूई में पिरोकर,
हम तो अपने अपने रास्ते पर चल दिए।
अपनों को समझाते समझाते,
ख़ुद को समझाना भूल गए।
फिर समझ आया,
हालातों के साथ समझौता करके ,
हम तो अपने अपने रास्ते पर चल दिए।
दूसरों को ख़ुश रखते रखते,
ना जाने क्यों हम अपनी ख़ुशियाँ भूल गए।
फिर समझ आया,
जीवन के इस चक्रव्यूह में फँसकर,
हम अपने अपने रास्ते पर चल दिए ।
मन का विवेक-
करन दाक्षी
ख़्वाहिशें है आज़माइशें है
दो आत्माओं के मिलन की फ़रमाइशें भी है,
सादगी की मूर्त है
अनेकों कलाओं में दक्ष भी है
वो हमारी प्यारी दाक्षी है
खुदा इस प्रेम आत्माओं के जोड़े को ख़ुश रखना,
ये मेरे दिल से की हुई दुआएँ भी है-
फिर भी उम्मीदें हैं अभी और भी बाक़ी
लड़ेंगे लहरों से और
पार करेंगे सभी तूफ़ानों को ए साथी।
करते चलेंगे बातें मछलीयों से
और बढ़ते जाएँगे अपनी मंज़िल की ओर ए साथी।
डर नहीं हमें तूफ़ानी रातों का,
बस उम्मीद है एक अच्छे साथी का।
मन का विवेक
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हक़ीक़त
ख्वाहिशें थीं फ़रमाइशें थीं,
जहां गए वहाँ आज़माइशें भी थी ।
कुछ अपने थे कुछ पराए थे,
उस मोड़ पर कुछ अनजाने साए भी थे ।
सोचा था तक़दीरें बदलेंगे वहाँ अपनी,
लेकिन!
जब लौटे तो ख़ाली लिफ़ाफ़े सी
ज़िंदगी थी ।
मन का विवेक-
एक दिन
रोकूँगी मैं एक दिन इस उबलते हुए ज्वालामुखी को
जो धधकता है मेरे सिने में।
लगाऊँगी एक दिन पूर्णविराम
इन दिल दहलाते प्रश्नचिहनो पर।
सुलगते है जो आज भी
बिलखते अंगारों की तरह।
करूँगी विनाश इनका
आँसुओं से बौछारों की तरह।
आज फिर टूटा है भ्रम मेरा
आऊँगी लौटकर एक बार फिर से दुर्गा की तरह।
मन का विवेक-
मन की चाहत
मन की चाह है एसी कि लहलहाते खेतों में बलखाऊँ।
इन पेड़ों की डालियों में डुग डुग हिंडोले खाऊँ।
बलखाती बेलों में लिपट कर सों जाऊँ।
कुलमुलाते गेंदों के फूँलो की ख़ुशबू में खो जाऊँ।
आसमाँ में ख्वाहिशों के पर लगाकर उड़ जाऊँ।
इस चांह में एसे उलझी रहूँ कि कभी ना होश में आऊँ।
मन का विवेक
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Khwaabo ke lamho ko sanjoye hue
Beet gye vo din,
Aayenge laut kar fir un khwaabo ke pannho me,
Simat jaayenge ek baar fir
makhmali kohre me bundo ki tarah
Mann ka vivek-
लम्बी रातों का इंतजार भी है अनोखा,
जिसने भी किया उसने खाया है पल पल धोखा।
मन का विवेक-