शिक्षक दिवस के अवसर पर, जिंदगी तुझे मुबारक हो
पतवार थामकर मेरे मन की, बुद्धि की बनी कारक हो।
शीष नवाकर तुझे वंदना, ठोकर से भी जो ज्ञान दिया।
शिक्षक बनकर व्यक्तिगत की,हर पल बनी तुम मारक हो।-
मिल गये जो आप तो और क्या चाहना
अब खुदा से और कुछ नहीं है मांगना ।।-
प्रकट दिन आज है जिसका, वही है सार जीवन का।
जहां भी डगमगाई मैं, बना आधार वो मन का।
चराचर है निहित जिसमें, कहे दुनिया जिसे दाता-
वहीं लल्ला यशोदा का,खिलौना नन्द आँगन का।
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उड़ चले परिंदे
अपने सपनों को आँखों में भर के
जिम्मेदारियो का लबादा पहन
भटकते है अब शहर-शहर।
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सावन मास लगे है प्यारा,धरा हरितिमा सज छाई।
बरसते बादल की बूंदों से,बीजों में कोपल आई
कहीं हरी फसले लहलाती,कहीं सूखा पड़े भारी,
व्याकुल कृषक हृदय गाता है, अब तो बरसों हरजाई।-
लगे सावन बड़ा प्यारा, कि जब बादल गरज़ते हैं।
कहीं मन को भिगोते हैं, कहीं तन भी तरसते है।
कहीं धरती हरी होती, कहीं मन भी हरा होता,
कहीं यादें बरसती हैं, कहीं पर घन बरसते हैं।।
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खो दिया था खुद को
जिम्मेदारियो से लदी बन पलास में
अब निकल पड़ी हूँ मैं
अस्तित्व की आस में...!!
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जो भगवान ने बिन मांगे
मेरी जिंदगी में तुझे
उपहार स्वरूप दिया है।
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कदमों के निशां छोड़कर इस फरेबी दुनिया से रुखसत हो चले है।
कभी याद आये तो चले आना
हम वही इंतजार करेंगे जहाँ प्रथम कदम साथ चले थे।-