Manju Mittal   (M@njuMitt@l✍️💕)
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Joined 14 May 2021


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20 JUN AT 10:58


ईश्वर बड़ा शातिर निकला
जाने क्या विचार कर
उसने सबसे पहले कांटों को जन्म दिया,
शायद ईश्वर ये जानता था कि
हमें दुःख सींचने भलीभाँति आते हैं 
या फिर ईश्वर ये जानता था कि
प्रेम पाना इतना सरल नहीं हैं,

ईश्वर ने काँटे इसलिए नहीं उगाये
कि वो हमारी भावनाओं को
आहत पहुंचाना चाहता था
वर् न इसलिए कि वो बताना चाहता था
कि प्रेम प्रतीक्षा का ही पर्याय हैं,
(शेष अनुशीर्षक में)

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13 JUN AT 1:44

शब्दों में बधाई भाव भरूं या माफ़ी की लगाऊँ गुहार,
ख़ैर जाने भी दो जन्म दिन की शुभ बेला पर खूब प्यार,,

सखी प्यारी पारुल जी को
अवतरण दिवस की हृदय से
अशेष शुभकामनाएं 🎉🎉
🎉🥳🎉🥳💫💖💐🎂🎂🍫🍫

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13 JUN AT 1:05

काश टल जाती बला मौत ने ना निगला होता,
क्या दर्द का खौफनाक मंजर ऐसा भी होता हैं,,
😓😓

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2 JUN AT 19:56

अंतर्मन...मन में शब्दों के भाव लिए भावनाओं का अन्तर✍️

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2 JUN AT 19:30

*प्रार्थना*

एक ने_
दर पर लगाई थी अरदास
एक को_
सता रहीं थीं भूख-प्यास
यकीनन उस ईश्वर ने
आज_
दोनों की प्रार्थना सुनी है,
एक की मन्नत पूरी होने में
दूजे को दो जून की रोटी मिली है,,

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23 MAY AT 17:58

पलकों की कोरों पर कब से आँसू ठहरे हैं,
तन्हा सफ़र हैं मिल रहे ज़ख्म बड़े गहरे हैं,,

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16 MAY AT 13:13

कोरे सफ्हों पर उन कविताओं को
ज्यादा जगह मिली
जिन्होंने प्रेम को जाते देखा,
अधखिले फूल जो सज ना सके
कभी प्रेमिकाओं के गेसुओं में,
प्रेम ने जाने दिया उन प्रेमिकाओं को
जो लाज लज्जा को संभालने का दायित्व उठाई थी,
वह प्रेमिका जो सदैव प्रतीक्षारत रहीं
अपने प्रेमी की...उसकी देह में उठती पीड़ाओं
की हूक से बेहतर था अश्कों का बह जाना,
थक चुकी लाचार देह बाट
जोहती रही दो टूक कमाने को
शहर गए बेटे के लौटने की,
साहिल ने जाने दिया उस नदियाँ को
जो सदैव अतृप्त ही रही,
दरख्तों ने भी कभी दुख नहीं माना
जाने दिया छोड़ कर जाते पीले पातों को,
जाने दिया मनुष्य देह ने भी उन तमाम वेदनाओं,
संवेदनाओं को जो कभी कोई सुन ही ना सका,
लौट कर आने के लिए या फिर
अपने अस्तित्व को पाने के लिए हर चीज का...
"जाना ज़रूरी है क्या!"
_ManjuMittal ✍️💫

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15 MAY AT 19:47

इम्तिहान लेती रोज,मंज़िल के बहाने

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11 MAY AT 12:47

सोख लेती आँचल से अपने निर्झर सा बहता रिसाव,
हर मुश्किल का हल होती माँ झट से भाँप लेती तनाव,,
कर्तव्य विमुख जो हुआ पथ से पथपर्शिका बनती माँ,
मौन रह कर जाती सब,ज्यादा कहाँ कुछ कह पाती माँ,,
सफ़र की धूप में रिसते छालों से ग़र जो डगमगाते कदम,
हिम्मत का दरख़्त बन सिकुड़ते तन पर छाँव करती माँ,,

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23 APR AT 16:57

कलंकित किया हैं धर्म को हैवानियत ने,
मानव का ना यूँ व्यापार कीजिए,

हो जाओ तैयार,उठा लो हथियार,
बस वार कर अब आर या पार कीजिए,,

विनम्र श्रद्धांजली🙏 😢

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