आसमाँ मे तो,चाँद-तारे ,रोज रात निकलते हैं ,
यार, अब लौट आओ तुम, तन्हा हम चलते हैं.
और कितना इन्तेज़ार कराओगे, कुछ तो बताओ,
तेरे इन्तेज़ार में, विरह की आग में, हम जलते हैं.
जब आती है तेरी याद ,सीने में चुभन सी होती है,
रात भर, तेरी याद मे जाग, करवट हम बदलते हैं.
तकते रहते हैं रात भर, खुले आसमाँ मे चाँद को,
लाकर तसव्वुर मे,शब-ओ-सहर तक,हम जगते हैं.
डूब जाता है, हमारा दिल, तेरे ख्यालो मे इस क़दर ,
ढूंढते हैं हरपल,अक्स तुम्हारा,ख़ुद को हम छलते हैं.
करते हैं इंतज़ार तुम्हारा, फ़िर वापिस लौटने का ,
ज़ुबाँ पर,हर वक़्त तेरे नाम की,माला हम जपते हैं.
-डॉ मंजू जुनेजा (22/92024)
- Dr Manju Juneja
10 MAY AT 16:25