"भारत सरकार द्वारा संचालित 'हर घर तिरंगा योजना' स्वयं में एक स्वार्थयुक्त एवं छिछला राजनैतिक उपक्रम
है l जिसका उद्देश्य ना तो राष्ट्रीय ध्वज की महत्ता स्वीकारना है और ना ही देशभक्तों की गणना करना, अपितु इसका एक मात्र लक्ष्य जनसामान्य में सनसनी पैदा कर भावी राजनैतिक मसौदे तैयार करना है l
क्योंकि देशभक्ति केवल इस तर्क से सिद्ध नहीं होती कि हम कितने तिरंगे हमारी छतों पर फहराएंगे बल्कि इस तर्क से सिद्ध होती है कि हमने ऐसे कौन-से कार्य किए हैं जो हमारे परिवार, हमारे समाज और हमारे देश के हित में हैं l"
अतः मुझे भय है कि जनसामान्य द्वारा तिरंगे का अधिक उपयोग कहीं उसकी विशिष्टता एवं शुचिता को भंग ना करे, क्योंकि....
"जहाँ वस्तु विशिष्ट के दायरे से निकल सामान्य के दायरे में पहुंच जाती है वहाँ उसका दुरुपयोग निश्चित है l"🙏🙏🙏🙏🙏
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"विवेकहीन अपरिपक्व मन पर दुष्प्रभाव डालने वाले साहित्य का पूर्णतः निषेध होना चाहिए l"
"जिसका प्रत्यक्ष एवं अश्लील प्रदर्शन वर्तमान काव्य मंचों पर धड़ल्ले से किया जा रहा है और उन्हें सुनने वाले सुधी श्रोता बड़े ही गर्व के साथ उस फूहड़ता को कभी श्रृंगार, तो कभी हास्य का तमगा दे आनंदित होकर गुन- गुनाते फिरते हैं l"
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"धार्मिक-आडंबरता वैचारिक 'अशुचिता' से उत्पन्न मानसिकता का परिणाम है "
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"सांप्रदायिक कट्टरता विकृत मानसिकता का एक जटिल पक्ष है जो हमारे हृदय को भावशून्य बना देता है "
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"अपने उद्देश्य एवं सफलता के मध्य पनपती सामाजिक अपेक्षाओं को आत्म दबाव के रूप में नहीं, अपितु ऊर्जा
के रूप में ग्रहण करें "-
"अपनी अक्षमताएं ढकने के लिए समय, क़िस्मत एवं ईश्वर सस्ते और टिकाऊ साधन हैं "
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"जीवन में अर्जित समस्त उपलब्धियाँ आपके प्रारब्ध पर नहीं, बल्कि आपके श्रम पर निर्भर करती हैं"
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ज़माना तब भी पीछे था ज़माना अब भी पीछे है l
हमारे हौसलों के आगे अब तक किसकी चली है ll-
प्रायः दूसरों की नज़र में अच्छा बनने के लिए लोग अपने मूल व्यक्तित्व को खोते जा रहे हैं l
किन्तु उन्हें ये ज्ञात होना चाहिए कि "समाज एक कृष्ण- छिद्र (Black Holl) है जो किसी के वर्चस्व को अधिक समय तक स्वीकार कर नहीं चलता ll"-
"हमारी छोटी-छोटी सृजनात्मकतायें हमें दुनिया का एक महत्वपूर्ण अंग होने का अहसास दिलाती हैं "
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