अपने आप को पहचानो
कोई क्यूं तुम्हें जानेगा पहचानेगा,
सबको अपनी पहचान बनाने की लगी है,
इस दौड़ में कई अपने भी छूट गए,
जो जानते थे पहचानते थे तुम्हें
क्या ये काफी नहीं था?
परायों के बीच खड़े दो राहों पर,
निकले वे बेगाने इस अनजाने शहर में,
पहले अपने आप को तो पहचान लो,
आख़िर तुम्हें सुकून कहां मिलता था,
ये सोच कर तो एक बार देखो लो।
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