बनकर सुबह का सूरजरोज़ मुस्कुराता हूं मैं।छू कर किरणों के कर से,नींद से जगाता हूं मैं।महसूस तो करती नहीं,और कहती हो कि कभी नहीं आता हूं मैं। -
बनकर सुबह का सूरजरोज़ मुस्कुराता हूं मैं।छू कर किरणों के कर से,नींद से जगाता हूं मैं।महसूस तो करती नहीं,और कहती हो कि कभी नहीं आता हूं मैं।
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The evening came smiling..Waving the black hair..Fluttering the beautiful aanchal..But you didn't come.. even after Promise...! -
The evening came smiling..Waving the black hair..Fluttering the beautiful aanchal..But you didn't come.. even after Promise...!
कैसे बताऊं हाल,खुद को भूला दिया हूं उनको जब से मैं, दिल में बसा लिया हूं। -
कैसे बताऊं हाल,खुद को भूला दिया हूं उनको जब से मैं, दिल में बसा लिया हूं।
अनुभूति ही सुख और दु:ख है। -
अनुभूति ही सुख और दु:ख है।
बेटी बनेगी दुल्हन, बारात आने वाली है,इक नई ज़िंदगी की, शुरुआत होने वाली है।प्यार से है पाला, बिटिया हमारी लाडली है,अभी है हमारी, अब पराई होने वाली है।मां ने दिया जनम, पिता ने प्यार से है पाला,विदा होकर मैके से, ससुराल जाने वाली है।बदल रही किस्मत, पति संगिनी बनने वाली है।इक नई ज़िंदगी की, शुरुआत होने वाली है।mkm -
बेटी बनेगी दुल्हन, बारात आने वाली है,इक नई ज़िंदगी की, शुरुआत होने वाली है।प्यार से है पाला, बिटिया हमारी लाडली है,अभी है हमारी, अब पराई होने वाली है।मां ने दिया जनम, पिता ने प्यार से है पाला,विदा होकर मैके से, ससुराल जाने वाली है।बदल रही किस्मत, पति संगिनी बनने वाली है।इक नई ज़िंदगी की, शुरुआत होने वाली है।mkm
ये कैसा सामाजिक दस्तूर है,नौकर है तो कोई हुजूर है।मानव-मानव सभी तो एक हैंफिर काहे घृणा- द्वेष-गुरुर है।ऊंच-नीच का क्यों भेद-भाव है,मजबूत तो कोई मजबूर है।जात-पात के जाल-जंजाल मेंपास रहकर भी हम सब दूर हैं।मानव-मानव रहे एक समान,यही प्रेम-प्रकृति का सुरूर है।mkm -
ये कैसा सामाजिक दस्तूर है,नौकर है तो कोई हुजूर है।मानव-मानव सभी तो एक हैंफिर काहे घृणा- द्वेष-गुरुर है।ऊंच-नीच का क्यों भेद-भाव है,मजबूत तो कोई मजबूर है।जात-पात के जाल-जंजाल मेंपास रहकर भी हम सब दूर हैं।मानव-मानव रहे एक समान,यही प्रेम-प्रकृति का सुरूर है।mkm
देकर झांसा मेरी उम्मीदों को टहला रहा है,आजकल वो गरीबों का मसीहा कहला रहा है।बता दिया जब से मैंने अपनी मजबूरियों को,धमकी देकर बार-बार दिल को दहला रहा है।घिर गया हूं कशमकश में, करूं तो क्या करूं,मेरे ही दर्द से वो दिल अपना बहला रहा है।छोड़ दूं संगत उसकी या यूं ही घूंटता रहूं,कुरेद कर मेरे ज़ख़्मों को, वो सहला रहा है।mkm -
देकर झांसा मेरी उम्मीदों को टहला रहा है,आजकल वो गरीबों का मसीहा कहला रहा है।बता दिया जब से मैंने अपनी मजबूरियों को,धमकी देकर बार-बार दिल को दहला रहा है।घिर गया हूं कशमकश में, करूं तो क्या करूं,मेरे ही दर्द से वो दिल अपना बहला रहा है।छोड़ दूं संगत उसकी या यूं ही घूंटता रहूं,कुरेद कर मेरे ज़ख़्मों को, वो सहला रहा है।mkm
सुविधा ही दुविधा का कारण है। -
सुविधा ही दुविधा का कारण है।
अद्भुत है प्रेम कहानीआंख -मिचौली का खेल दिल को लुभाता है,सूरज और चांद कभी कभी नज़र आता है।जब दूर होते हैं तो हाल बदल जाता है,जब पास होते हैं तो साल बदल जाता है।कंपकंपाती सर्द में हवाओं की रवानी,नरम धूप में निखरती फिज़ाओं की जवानी।धूंध में झिलमिलाती मुहब्बत की नादानी,दिसंबर - जनवरी की अद्भुत है प्रेम कहानी।mkm -
अद्भुत है प्रेम कहानीआंख -मिचौली का खेल दिल को लुभाता है,सूरज और चांद कभी कभी नज़र आता है।जब दूर होते हैं तो हाल बदल जाता है,जब पास होते हैं तो साल बदल जाता है।कंपकंपाती सर्द में हवाओं की रवानी,नरम धूप में निखरती फिज़ाओं की जवानी।धूंध में झिलमिलाती मुहब्बत की नादानी,दिसंबर - जनवरी की अद्भुत है प्रेम कहानी।mkm
जलन क्यों है...उनको मुझसे जलन क्यों है,दफ्तर में ऐसी चलन क्यों है! कर्म पूजा है जीवन में,फिर धर्मों का प्रचलन क्यों है!सम्मान पूंजी है मनुष्य की,फिर अपमान का चलन क्यों है!अहंकार अच्छा नहीं होताफिर वहम का प्रचलन क्यों है!mkm -
जलन क्यों है...उनको मुझसे जलन क्यों है,दफ्तर में ऐसी चलन क्यों है! कर्म पूजा है जीवन में,फिर धर्मों का प्रचलन क्यों है!सम्मान पूंजी है मनुष्य की,फिर अपमान का चलन क्यों है!अहंकार अच्छा नहीं होताफिर वहम का प्रचलन क्यों है!mkm