इबादत हो रही हैं रब की, ज़ेहन में तेरा ख्याल क्यों है?
गर चाँद आसमान पर है...ज़मीं पर मचा ये बवाल क्यों है?
इक चाहत पोशिदा है मेरी, के चुम लु तूझे मैं...
मेरे इश्क की पाकीज़गी पर सवाल क्यों है?-
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औढ़ चूनर आसमानी के...सारा जहान तेरा हैं,
ये ज़मीं तेरी हैं,ये आसमान तेरा हैं,
मशाल-ए-राह हैं तु खुद की,
नज़र उठा...बता कहाँ अंधेरा हैं?-
बड़ी बेशर्मी से सिमट रही थी किसी गैर की बाहों में,
तेरा अंदाज-ए-बेवफ़ाई पसंद आया हमें|-
वाह! क्या अदब है उसकी अदाओ में,
मैं काफ़िर था शहर का...अब दिवाना लगता हूँ|-
छोड़ा है जब से शहर मेंने,
वो छत पर नहीं आती,
ख़फ़ा हैं रब से,
वो मंदिर अब नहीं जाती||1||
सूजा रखी हैं आँखे उसने ग़म में मेरे,
वो आँखों में काजल नहीं लगाती,
विरानीयां जाती नहीं मोहल्ले से,
वो पायल उसकी अब शोर नहीं मचाती||2||-
Dard-E-Vasihat Mere Naam Likh Di,
Ye Khuda Tune Meri Kesi Kismat Likh Di,
Kya Bichhada Tha Tujhse Bhi Tera Koi Aziz,
Jo Aasuon Se Apne Mere Hathon Ki Lakir Likh Di.-
लगता हैं दुवा तेरी क़ुबूल नही की उस रब ने,
वरना दुवाओं में तो तुने मुझे ही मांगा था ना?-