Manisha Mishra   (MM)
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Joined 2 October 2017


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5 FEB 2023 AT 11:17

Hey everyone!!
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Link is in my bio. Please do follow!

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27 JAN 2023 AT 0:40

ढलती सी करवट ले
अलसाई सी मेरी आंखे
तुम्हारे ख्वाबों में
खुलती बंद होती हैं,
ढलते से अंधेरों में
सपनों में खोई सी
अलसाई सी मेरी आंखें
दर बदर फिरती हैं ,
पर मेहरबानी सी है कुछ
तुम्हारी या तुम्हारे ख्वाबों की
अल्साई सी मेरी आंखों पर
रोशन है जिनमें
तुम्हारें ख्वाबों से
हर रोज मेरी ये सियाह रातें !!

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3 NOV 2022 AT 22:49

एक रोज पुरानी अलमारी की सफाई में
पुरानी किताबों के पन्नो के बीच
मिला मुझे एक पुराना सा फूल
फूल वो जो तुमसे मिला पहली बार
मेरी ज़िंदगी का वो पहला फूल
वो जो संभला सा है पुरानी यादों में
पुराने पन्नों के बीच
खिलना चाहता जो हर रोज मुझमें
महकाना चाहता मेरी अलमारी के हर कोने को
लौटना चाहता उस पुरानी याद में
वो पहली छुवन के अहसास में
वो फूल जो अब दबा दबा सा सूख गया है
मेरी अनचाही जिम्मेदारियों के बोझ तले
वो जिसकी महक अब घुल गई है
महंगे इत्रो के लिबास में!

– मनीषा मिश्रा

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3 NOV 2022 AT 22:21

about my lonely soul.

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1 JUL 2021 AT 2:45

1st July..
Time - 2:37 am

Lot of things in my mind and I don't know why I am not able to sleep... Just trying since last 2 hours.

Sometimes your own mind becomes the most annoying one on this earth .. And the worst part.. you can't help yourself. This sleepless night with lots and lots of things running in my mind.. It really sucks!!

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22 JUN 2021 AT 2:38

कितनी ही बातों
कितनी भावनाओं से परे उठकर
तुम्हें समझना चाहती हूं
पर हर बार घिर जाते
तुम्हारे रटे से जवाबों में
मेरे अनगिनत सवाल,
हर बार कुछ निर्लज्ज हो
वापस लौट मुझसे ही
पूछते मेरे सवाल,
क्यूँ अनगिनत सवालों में
उलझा तुम्हारा मन??और
कब तक ही अकेली
तलाशती फिरोगी..
खुद ही खुद से
इन सवालों के होने का
वास्तविक ज़वाब??

मनीषा मिश्रा

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22 JUN 2021 AT 2:24

कभी कभी कुछ शब्द दिल तोड़ जाते, कुछ ऐसे ही थे वो शब्द... "अब वो वक़्त नहीं.. जो पहले था"
वो भी धीरे धीरे इतना तो समझने लगी थी कि अब सब कुछ पहले सा नहीं है.. ना ही पहले सी बातें है, ना ही पहले सी बेफिक्री है, ना ही पहले सा जादू रह गया, ना ही पहले से तुम.. और ना ही पहले सी वो खुद!!
फिर भी उसका दिल कभी ये उम्मीद छोड़ नहीं पाया, वो बिता हुआ वक़्त ही अब वापस से जीना चाहती थी। कहते हैं... अच्छा वक़्त जल्दी बीत जाता.. शायद उसके साथ भी यही हो रहा था और अब भी उसका दिल उसी उम्मीद में था कि शायद से सब कुछ पहले सा हो जाए लेकिन...

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

बाकी फिर कभी..

- मनीषा मिश्रा

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27 MAY 2021 AT 1:56

वो मुझे उस से पहले
खुद को रखना सिखाता है,
उसकी पसंद की
बाकी सारी चीजें छोड़
मेरी किताबों से दोस्ती कराता है।
रोजाना की वही सब बातें भूल
वो मेरी तरक्की के रास्ते दिखाता है
वो अनगिनत से वादे ना कर
बिना किए सारे वादे निभाता है।
वो मेरे हर रूप को
हमेशा अनवरत चाहता है,
कुछ ऐसी मोहब्बत करता है वो
जो बिल्कुल मेरे पिता की तरह
मुझे सफल बनाना चाहता है।।
मनीषा मिश्रा

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26 MAY 2021 AT 1:08

दिन रात की सरहदों पर
हर रोज तुझसे बिछड़ा करती हूं

तेरे शहर की धूप में
हवाओं सी गुजरा करती हूं

तेरे दरस की आस में
हर सुबह कली सी खिलती हूं

शाम होते ही मुरझा कर मैं
सूरजमुखी सी ढलती हूं

तेरे फूलों की बगिया में मैं
मोगरे सी महका करती हूं

हर रोज मिलन की आस लिए
सालों से तिल तिल मरती हूं ।।
मनीषा मिश्रा

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10 MAY 2021 AT 13:28

उसकी उदास सी
हथेलियों में
कैद थी
तुमसे जुड़ी रेखाएँ
शायद इसलिए
भींच ली गई
वो हथेलियां
और छिपा ली गई
टूटी सी वो रेखाएँ
समाज से बचती बचाती
ओढ़नी में मुट्ठी दबाती
एक दिन मजबूरी का नाम दे
आजाद हो उसे
अंदर तक तोड़ गई
हमेशा से बंदी रही
तुमसे जुड़ी वो रेखाएँ
और खाली सी पड़ी
वो उदास हथेली
अब भी तलाश रही
तुम्हारे आने की सुगबुगाहट
लाती वो रेखाएँ।।
- मनीषा मिश्रा

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