Mohobbat khud mai khubsurat h,
Tanhae ki bhi ake surat h.
Agr ishq h tumhai ,to ky batauin hr lamha khubsurat h.
Fir bhla kise ki hami ki hamin ky jarrurat h..-
Alfaz bante rahe
Majburiyoin ke kafile pr
Elzamat lgte rahe.
बेबफा कातिलों को बुलाया जाए , चलो आज इन्हें भी थोडा़ सताया जाए ।
बोलो तुम अपने- अपने महबूब का नाम ,आज इन इश्क के मसीहों को भरे ज़माने में रूसवा किया जाए।-
कुछ हसीन उनसे वास्ते।
अश्कों में तब्दील हुए,हंसी से गुंजते कई रास्ते।
तब्दीली के शोर में सैहमी सी मैं,
ना छोड़ मुझे युं तन्हा,
कुछ तो सोच अपने महबूब के वास्ते।
मुसाफिरों ने भी तंनज़ करते हुए पुछा ,
कहां है आशिक तेरा ,
आज क्युं तन्हा हैं तेरे रास्ते ।
जो कहता था तु ही है और तु ही रहेगी ,
क्युं छोड़ गया ना वो तुझे,फिर उन्हीं गैरों के वास्ते।
टेढे़ मेढे़ से रास्ते , कुछ हसीन उनसे वास्ते ।-
जान-जान करते -करते अनजान कर गया वो ।
कहता था इश्क करता हुं ,
इशक करते -करते बेबफाइ का मुकाम कर गया वो।
जान से अनजान ,
और बदनामी के अंजाम कर गया वो।
हां जिंदा दिल्ली इस इन्सान को बिल्कुल बेजान कर गया वो।-
अब उजालों से बहुत डरते हैं हम ।
उनके झुठ से महौब्बत कर बैठे ,
तेरे सच के सताए हुए हैं हम ।
यादें एक पल के लिए भी ओझल नहीं होती ,
अंधेरों में भी वो साए सताते हैं अब ।
उजालों से डर लगता है,
अंधेरों में ही ठंडक पाते हैं अब ,
हां झूठ के नहीं तेरे सच के सताए हुए हैं हम ।-
मेरी आंखों में अब भी नमी है।
कहना तो बहुत कुछ है मुझे , फिर ना जाने क्यूं ?
इस ज़हन में लफ्ज़ों की कमी है ।
क्युं भूल जाते हैं ये उपर ही उपर से उड़ने वाले ,
ठहरने को काम आती सिर्फ ज़मीन है।
रुह से अलहदा जिस्म से क्या प्यार करते हो ,
इश्क तो रूह की सरजमीं है।
मिल्कियत समझ बैठे हम उन पर ,
वो तो किसी और के आंगन की कली है ।
समझाया तो कई दफा है खुद को ,
पर दिल में समझदारी की ज़रा कमी है ।
बस इस दिल में सिर्फ तेरी कमी है।-
आज दिल में थोड़ा दर्द सा है,
लगता है,आज फिर उसकी याद आई है।
क्या समझाऊ दिल को अब वो पराई है,
इश्क में मेरे बस,अब रह गई तन्हाइ है।
छुट गया अब कोई हमदर्द सा है,
आज दिल में थोड़ा दर्द सा है।
कहने को तो वो मेरा परवर्दिगार सा है,
फिर रहता क्यों मुझसे वो बेनिसार सा है।
मुझे उस पे एतबार सा था,
में समझता उसे परिवार सा था।
लगता जमाना अब बेदर्द सा है,
आज दिल में थोड़ा दर्द सा है।-
हम फिर सोचेंगे सुबह का उजाला ,
निराशा में हर शाम तेरी जुस्तजू में डुब जाएगी ।
तेरी यादों के समुन्दर ने घेर रखा है मुझको ,
ज्यादा देर आंखें बन्द किए मैं रह नहीं सकती ,
खोलते ही आंख ये समुंन्दर की लहरें मुझे बहा ले जाएगी ।
अब जैसे आदत सी होने लगी है युंही रहने की ,
लगता है फिर एक और शाम युंही गुज़र जाएगी ।-
रो-रो के कटी कई रातें ,
सुकुन ना इक पल आया ।
हमने महौब्बत चाहि ,
हिस्से में मेरे धोखा ही आया ।
हमने यादों में भी जिंदा रखा उन्हें ,
मेरा महबूब कभी हाल पुछने भी ना आया ।
मैंने चाही महौब्बत ,
और हिस्से में सिर्फ मेरे धोखा ही आया ।-