सुना है, कैद कर लिया है तुने ख्वाबों को..
सरसराती हवाएँ भी है अश्कबार यहाँ..
ऐसे मायूस मनाज़िर मैं चुरा लूँ तो चलूँ..
तेरी खामोश सियासत में गुनगुना लूँ तो चलूँ..
बस एक नज्म का वादा है..
वो सुना लूँ तो चलूँ...
मनीषा कँवर-
जो तुम मगरूर हो तो,मुझे मगरूर मत समझो,
मेरी इन रास्तों को मंज़िलो से दूर मत समझो,
शराफत को मेरी कमज़ोरी का नाम मत देना,
मैं चुप हुं सोचकर के कुछ, मुझे मजबूर मत समझो।
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निर्वाण घर में बैठे का होता नहीं, कभी बुद्ध की तरह कोई मुझे घर से निकाल दे..
पीछे बंधे है हाथ मगर शर्त है सफ़र, किसी से कहे कि पाँव के काँटे निकाल दे।-
कहाॅं भयो तन बिछुरै, दुरि बसये जो बास
नैना ही अंतर परा, प्रान तुमहारे पास।-
प्यार की आस कभी नहीं थी,
बस तुम्हारा साथ चाहती थी..
एक दोस्त जो मिला था तुम में,
मैं बस उसे नहीं खोना चाहती थी..
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ज़हर देख कर पिया, तो क्या पिया..
इश्क़ सोच कर किया, तो क्या किया..
दिल दे कर, दिल लेने की आस रखी ?
यारा प्यार भी लालच से किया, तो क्या किया..-
जज़्बात.. जो कभी अल्फ़ाज़ो के मोहताज ना रहे..
आज वक़्त की देहलीज पर मुंह मोड़े खड़े हैं..
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शहर भर में सन्नाटा है..
दहशत कुछ यूँ रंग लायी है..
(read in caption👇)-
तुम्हें पाने की चाह में, मैं खुद को खोना नहीं चाहती..
तुमने कहा था ना, तुम कभी ज़रूरी थी ही नहीं..
यकीन मानो, अब ज़रूरी होना भी नहीं चाहती..
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