खुद में तुमको ढूंढना और सोचना तुम सा.
जब से हुनर ये आया, खुद को चाहने लगी हूं
मनीषा जोशी मनी
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मोम सी पिघल रही हूं ,ढल रही हूं इश्क में .
करवटें लो दर्द की बदल रही हूं इश्क में .
राब्ता ग़लत है आपसे तो बोल दीजिए
बेवजह में रोज-रोज जल रही हूं इश्क में ..
मनीषा जोशी मणि
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तिरी आँखों पे मरना आ गया है.
मुझे अब इश्क़ करना आ गया है.
नहीं है कम तेरी लत इक,नशे से
नशे का कश ये भरना आ गया है
मनीषा जोशी मनी
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परिंदा दर्द में होता है, तो वो कह नहीं पाता..
अगर रिश्तों मे बेड़ी हो तो,इंसा रह नहीं पाता..
बदल जाती है अक्सर ही यहा पर जिंदगी सबकी.
बँधा बोझों से जो पत्ता लहर में बह नही पाता .
मनीषा जोशी
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तेरी बातों में सुक़ू,तेरी आँखों मे वफ़ा
मैं किधर जाऊं मेरी जान ,तिरे दर के सिवा.
दिल तेरी ओर खिंचा,जाता है क्यों ये मेरा
मेरी धड़कन ने पुकारा है तेरा नाम सदा
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जीने के लिए सांसें ,ज़रूरी है ,ये माना.
सासों के लिए ,तू ,तेरी बातें भी ज़रूरी..
मनीषा जोशी
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तेरे सजदे मे झुका रहता है,ये सर मेरा
तू मसीहा तो नहीं,उससे कम भी तो नहीं
मनीषा जोशी-
ये जो परेशानियां हैं ना ,ये ख़त्म होती ही नहीं
रोज़ खो जाती हैं चीजें मुझसे ,पर ये खोती भी नहीं .
मनीषा जोशी-