सिर पर अपने कफ़न बाँध,
लड़ने जो निकले थे घर से।
बिन लड़े ही मारे गए आज,
एक आह न निकली स्वर से।
चंद दिन तक अख़बार टीवी में,
ये ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर आएँगे।
राजनैतिक दाँवपेंच की ख़बरों में दबकर,
सबकी स्मृति से धूमिल हो जाएँगे।
जो रक्षक बन खड़े थे तैनात,
आज ख़ुद ही सुरक्षित न रहे।
किसका जिम्मा था इनकी सुरक्षा?
ये प्रश्न करें अब हम किससे??- मन-ईशा की कलम से...
15 FEB 2019 AT 2:44