बचपन, जवानी, सोच, मर्यादा, मासूमियत, स्वाभिमान, आत्मसम्मान, क्रोध, पीड़ा, अनुभूति,प्रेम, अनुभव... वक्त वक्त पर सबकी आहुति मांगता है ये।
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पर,
तुम तो सुन कर भी अनजान बने रहे,
जान कर भी बेजुबान बने रहे,
चीखती रही मैं हर वक्त तुम्हारे आगे,
तुम देख कर भी नजरअंदाज करते रहे।-
बस, मुझे मेरी जिंदगी को इतना ही व्यस्त रखना कि जिससे तुम मुझे कभी याद ना आओ,
और तुम्हारे अलावा किसी और को चाह लू,
ये मुझसे होगा नहीं,
प्यार तो सभी करते है,
पर मैंने अनंत प्रेम किया है और अनंत प्रेम करती रहूंगी।
सिर्फ तुम्हारी...-
मैं अक्सर संबंधों और दोस्ती यारी में पीछे रह जाती हूं,
मेरा स्पष्ट बोलना,गलत को गलत,
सही को सही कहना,
ज्यादातर लोगों को पसंद नहीं आता,
फिर?
फिर क्या,
मैं हमेशा की तरह अपने अलग धुन में दुनिया से विरक्त अपनी डायरी और किताबों में खुद को तलाशती नज़र आती हूं,
हां मैं।
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भरे बाजार में मुझे थाम सको, तो मुझे अपना कहना, वर्ना मुझसे दूर रहना।
– मनीषा
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मैंने उसे देखा है, शिव से कृष्ण बनते हुए,
सती को राधा बना कर, सताते हुए,
गोपियों संग राधा को, जलाते हुए,
त्रिशूल छोड़ बसुरी को, बजाते हुए,
प्रेम की अलग परिभाषा को, समझाते हुए।
– मनीषा-
When you realise,
I am the "Onlyone" for you
then U come to close with me.— % &-
बहुत कुछ है तुमसे कहने को,
कभी अपनी व्यस्त जिंदगी से सुकून के तलाश में आना तुम,
मैं यही खड़ी मिलूंगी, तुम्हारे इंतजार में,
मुझे अपनी कीमत और तुम्हारे वक्त की अहमियत बहुत करीनें से पता है।
– मनीषा— % &-
Now, I collect my pieces by myself to make my New and magical life.— % &
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किसने कहा जिस्मों का मिलना स्पर्श कहलाता है,
वो दूर बैठा जब मुझे चोरी से निहारता है,
उसका निहारना मुझे भीतर तक महसूस हो जाता है।
– मनीषा— % &-