Manish Singh   (Manish Singh ✍️)
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Joined 5 May 2021


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Joined 5 May 2021
14 MAR 2022 AT 17:53

खुशियां छीन कर पूछते हैं वो,
कि तुम अब खामोश क्यों हो।— % &

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26 FEB 2022 AT 22:03

कोई हमसे मिला तो कोई हमसे बिछड़ भी गया,
जिसे हम अपना कहते थे वो भी हमसे दूर गया।
क्यों यादों की कस्तियों में सवालों का बोझ रहा,
जो मेरा न था उसको तूने मेरे पास ही क्यों रखा।— % &

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24 FEB 2022 AT 23:30

टूटी हुई थी राहें सारी मंजिल की,
तभी तो खुमारी थी तेरे इश्क की।
बात जानू भी क्या मैं तेरे दिल कि,
जब जिंदगी बनी थी एक रिस्क सी।
याद है वो फलसफा मुझे भी आज,
जब मेरे सीने में लगी थी वो आग।
नाम दुश्मन का बताऊं कैसे मैं अब,
जब खुदा ने खुद ही लगाई थी आग।
तभी तो शाम है ये खाली खाली सी,
इसलिए रात भी है जागी जागी सी।— % &

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12 FEB 2022 AT 16:20

अब कोई शिकायत न रही है किसी से,
बस शिकवा है तो बस सिर्फ दिलगी से।
तन्हाइयों‌ में साथ न छोड़ा कर ये जिंदगी,
रूबरू हो जाया कर तु भी कभी मुझसे।— % &

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19 JAN 2022 AT 2:02

यूं न तड़पा रे खुदा तु अब मुझको,
ये बेवसी अब मुझसे सही नी जाती।
छीन लाऊंगा मैं उसको भी अब तुझसे,
बस मेरी धड़कनों में तु सांसें चलने दे।

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22 NOV 2021 AT 5:20

कभी तो समझो यार कितनी चाहत होगी मेरे इस दिल में,
जो एकपल खपा होने के बाद भी खुद ही मान जाता हो।

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22 NOV 2021 AT 5:02

अभी तो बस जी रहा हूं,
मगर जीना भूल गया हूं।
जिस्म कांप रहा है मेरा,
मगर रूह अभी जिंदा है।
अभी तो बस जिंदा हूं,
मगर चैन से सोना बाकी है।
अभी तो बस टूटा हूं मैं,
बस बिखरना रह गया हूं।
मिट जाऊंगा मैं एकदिन,
मगर मिटना अभी बाकी है।


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22 NOV 2021 AT 4:19

एक शिकायत की थी हमने उनसे,
कि तुम मुझसे बात कर लिया करो।
डर सा लगता था मुझे खुद से ही,
कि मैं कहीं खुद से ही न खो जाऊं।
देखकर नजारा मेरी ये बेवसी का,
जमाना खूब वाब वाही लूटता रहा।
मगर अफसोस ये राज जानकर,
वो भी हमसे खूब दूरियां बनाने लगे।

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16 OCT 2021 AT 19:50

चूम कर तेरे होंठो को अब कुछ यूं,
बेकरारी मेरी इन धड़कनों में भी है।
खो जाऊं मैं अब तेरी इन सांसों में यूं,
मुझे सांस लेने की भी फुर्सत न मिले।

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14 OCT 2021 AT 19:46

रात तु भी न मुझको सहारा देगी..

ये रात अब तु भी न मुझको सहारा देगी,
तेरी कमी में अब दीवारें भी आवाज देगी।
लग रहा वो मुझे अपनी बाहों में न लेगी,
ये रात अब तु भी मुझे कभी सोने न देगी।
क्यों करूं मैं भी अब तुझसे इतनी वफाई,
जब तु करती रहेगी मुझसे यूं ही रुसवाई।
लगता है ये रातें भी अब मुझे सोने न देगी,
इसलिए अब ये दिन भी मुझे जीने न देंगे।
क्यों करता है ये दिल आज भी तेरी दुहाई,
न जानें क्यों याद न आती इसे वो तन्हाई।
करता है ये दिल भी क्यों अपनी मनमानी,
जब पता है इसे रात भी करेगी यूं शैतानी।

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