नज़रे उठी नहीं हैं
रूठी हैं
तुम जान भी हो जुनून भी !!-
हमें इश्क़ की तालीम पुरानी मिल गई है,
मोहब्बत अब किताबों की कहानी मिल गई है !!
वो आँचल, वो सदा, वो चुपके से निगाहें,
कहाँ अब वो निशानी या निशानी मिल गई है !!
कभी तुम भी हमारे लब पे ठहरे थे मुसल्सल,
अब उन लफ़्ज़ों को बस इक बेज़बानी मिल गई है !!
हमारी रूह तक से नाम तेरा जुड़ गया था,
मगर ये भीख जैसी महरबानी मिल गई है !!
जो अश्कों में लिखा करते थे तेरा तर्ज़ुमाँ हम,
उन्हीं काग़ज़ पे अब इक बदगुमानी मिल गई है !!-
मैं चाँद हूँ, मगर मेरे दिल में रात है,
हर रौशनी के पास कोई इक बात है !!
तू देखता है मुझको मोहब्बत की आँख से,
मैं चुप खड़ा हूँ, सीने में एक ज़ज़्बात है !!
हर बाम पे है मेरी चमक का ताजपोश,
पर रूह में तो बस तेरी यादों की बरसात है !!
महबूब की तरह मुझे तकता है ये जहाँ,
कौन समझे कि दर्द से बुझती मेरी ज़ात है !!
मैं चाँद हूँ, हसीं सही, तनहा भी बहुत,
जैसे किसी वफ़ा में छुपी खलिश की बात है !!-
मन चाहता है कि
तेरे कंधे पर सिर रख दूँ
बिना कुछ कहे
बस यूँ लगे कि वक़्त थम गया हो,
और तन्हाई भी मुस्कुरा रही हो !!
मन चाहता है कि
तेरी हर याद को गुलाब बना लूँ,
और हर गुलाब को तेरे नाम की नज़्म,
जो हर बार खिले जब मैं टूट जाऊँ !!
मन चाहता है कि
कोई दिन ऐसा आए
जब तुझे देखना न पड़े
तेरे बिना जीने का हुनर मुझमें ढूँढते हुए !!
मन चाहता है कि
ये चाहत कभी ख़त्म न हो
चाहे तू रहे या न रहे,
मगर तेरे होने का एहसास
हर साँस में, हर शेर में ज़िंदा रहे हमेशा !!-
गुलाब की पंखुड़ी जैसी वो,
नज़ाकत थी, या हवा जैसी वो !!
नज़र से उतर भी जाए अगर,
रहे दिल में फिर दुआ जैसी वो !!!
छुआ तो महक सी उठने लगी,
थी रूह की इक सदा जैसी वो !!
बिछड़ कर भी दिल से जाती नहीं,
मुझे लगती है खुदा जैसी वो !!
हज़ारों में एक नाम उसका,
मेरी आँख की हया जैसी वो !!-
सपनों की दुनिया में अक्सर, हर ख्वाब हक़ीक़त होते हैं,
जो अश्क़ न कह पाए दिल से, वो दर्द वसीयत होते हैं !!
वो लोग जो हँसकर बिछड़ें, ताज़ा सी शबनम लगते हैं,
पर याद में जब जागें तो, ज़ख़्मों की आदत होते हैं !!
हर पल जो तेरी आवाज़ में जिया, अब खामोशी बन बैठे,
क़िस्से तेरे तास्सुर निकले, पर नाम शिकायत होते हैं !!
हम रात की तन्हाई में, जो चुपचाप तुझे सोचें,
वो सोच नहीं, दीवानों की रूहों की इबादत होते हैं !!
ख़्वाबों से जो रिश्ता रखा, वो नींद ने तोड़ा कब था?
कुछ ख़्वाब अजब से कै़दी हैं, जो खुद ही हिफ़ाज़त होते हैं !!-
लबों पे था नाम उसका इस तरह,
हर दुआ में वही इशारा बन गया !!
ग़म-ए-उल्फ़त सँजो लिया दिल में,
और वो ज़ख़्म बनके प्यारा बन गया !!
तेरे जाने से सूना है हर समां यारा,
ख़िज़ाँ आँखों का किनारा बन गया !!
इश्क़ ने बाँधकर रखा हमें गुलाबों से,
दिल जो दिया वो आवारा बन गया !!-
गुलाब जैसा था वो, मगर काँटा बन गया,
इश्क़ जब हद से बढ़ा, तो तमाशा बन गया !!-
हमसे मत पूछ वफ़ा कैसे निभाई हमने,
तेरी खामोश नज़रों से सज़ा खाई हमने !!
था यक़ीं तेरे तअल्लुक़ पे, मगर ये जाना,
ख़ुद को खोकर तुझे बस दुआ पाई हमने !!
क़ल्ब में जख़्म थे और होंठ पे शेर रखे,
यूँ ग़ज़ल कहके तेरे ग़म की रसद लाई हमने !!
तू ख़ुदा था कि मेरा इश्क़ ही था मेरा ख़ुदा,
हर सजदे में तेरी याद ही दोहराई हमने !!
अब तो उम्मीद से भी शिकवा नहीं करते हम,
तेरी आदत को ही तक़दीर बनाई हमने !!
कौन कहता है कि ज़िंदा हैं अभी साँसों में,
जिस्म पहने हैं, मगर रूह गँवाई हमने !!-
दिल को भी अब तआरुफ़-ए-उल्फत नहीं रहा,
कहने को इश्क़ है, मगर हसरत नहीं रहा !!
हम ख़ुद से पूछते हैं तेरा गुनाह क्या,
तू बेवफ़ा भी था तो शिक़ायत नहीं रहा !!
जिन आँखों में तेरी झलक़ थी कभी कभी,
अब उनमें भी कोई ताबिर-ए-रहत नहीं रहा !!
ग़म यूँ गले लगा कि सुकूँ का ख़याल भी,
मेहमान-ए-दिल रहा था, अदावत नहीं रहा !!
हमने तो दर्द को भी तअल्लुक़ बना लिया,
वरना तो इस जहाँ में इनायत नहीं रहा !!-