Manish Kumar   (मनीष)
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Joined 26 June 2017


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17 OCT 2022 AT 19:40

ख़ुद को कमरे में बंद कर,
इंतज़ार, अंजाम का करोगे क्या?

शहर की शाम बहुत मस्तानी है,
सोच लो, अपना नुकसान करोगे क्या?

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19 AUG 2022 AT 20:49

मेरा भी उद्धार करो कान्हा,
मैं तेरे दर शौक़ से आया।
भटकता रहा उजालों में,
और अंधेरे में तुम्हें पाया।

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19 AUG 2022 AT 19:05

मेरी मोहब्बत की गवाही देते हैं जो,
उनसे पूछो मैं मोहब्बत क्यों नहीं करता?
ये फ़कत बातें करना, मिलना-जुलना बेचैन रहना,
जो मुझे पसंद था वो हरकतें क्यों नहीं करता?

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18 AUG 2022 AT 14:05

एक मेरे दर्द का, इलाज क्यों नहीं होता?
जो कल होगा, वो आज क्यूँ नहीं होता?

जाओ मैंने माफ किया, तेरी गलतियों को,
सजा तुझको दूँ, ये मिज़ाज क्यों नहीं होता?

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14 JUN 2022 AT 13:03

आँखें मेरी तलाश रही जो वो सच मुझको दिखला दो
ख़्वाब मुक़म्मल हो या न हो आश्वासन ही दिलवा दो

ख़ैरात में सब लुटाने वालों कुबेर वंशजों फ़रियाद है
भटक रहे इन जज़्बातों का एक मकान बनवा दो

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31 MAY 2022 AT 0:00

हैरानी ये कि,
मुझे ख़ुद ही नहीं मालूम।
परेशानी कितनी है मुझे,
ये शायद तुम्हें मालूम।

तू पास है तो सुकून है,
और इसी सुकून में गुम हैं…
मेरी सारी तकलीफ़े।

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30 MAY 2022 AT 8:38

जो बातें दिल में है तेरे,
तू उसका इक्तिशाफ़ तो कर...
जुबां चाशनी है तेरी,
पर दिल को साफ़ तो कर...

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28 MAY 2022 AT 22:31

ख़ुश जितना दिखते हो तुम,
उतना ख़ुश रहा भी करो...
बड़े ख़ामोशी से सुनते हो मुझे,
कभी तुम कुछ कहा भी करो...

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12 MAY 2022 AT 0:17

अपने उम्र के बच्चों को,
ठेला चलाते देख।
मैंने भी, ठेला चलाना सीखा,
और चलाया भी,
मगर, शौक से।

जब भी याद करता हूँ बचपन,
तो वो बच्चे याद आते हैं।
जो कभी मेरे जैसे थे,
और, अब अपने उम्र से बड़े लगते हैं।
जब मैं पलता था,
घर वालों के ख़र्चे पर।
तब वो पालते थे घर वालों को,
ठेले से हुए आमदनी पर।

न कोई घरेलू हिंसा
न ही उनका शोषण था वो
फिर क्या था...क्या था वो?
जो हम दोनों को अलग कर रहा था।

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3 MAY 2022 AT 21:47

चाँद ने कहा मुझसे कि ईद तो बहाना था
उसको तुमसे मिलने एक न एक दिन आना था

दुआएं तेरी सुनकर ख़ुदा भी एक दिन रोया था
क़ुबूल वो दुआएं सब ईद के दिन होना था

बाँटो मोहब्बत, मनाओ जश्न, खाओ सेवई
तुम्हें तेरी खुशियाँ सब ईद के दिन मिलना था

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