Manish Kumar   (मनीष 'मुसाफ़िर')
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Joined 21 November 2020


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22 JUN AT 14:12

बस रोज़ मुझे एक नज़र देख लिया कर
इतवार जुमेरात न कर देख लिया कर

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4 JUN AT 21:16

ख़त का मज़मून भाँप लेते थे
जो लिफ़ाफ़े को देख कर यारो

सामने से गुज़रते हैं लेकिन
अब मिलाते नहीं नज़र यारो



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20 MAR AT 9:03

कहता है कोई मेरे हक़ में तो
कोई मेरे ख़िलाफ़ कहता है

उसकी बातें समझ नहीं आती
जो यहाँ साफ़ साफ़ कहता है

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19 MAR AT 13:30

कुछ दिनों तक नज़र नहीं आते
जिनको पैसे उधार देता हूँ

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18 MAR AT 21:22

गुज़ारे किस तरह से दिन बताओ यार मुल्ज़िम भी
बरी होता नहीं तब तक उसे क़ातिल समझना है

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13 MAR AT 0:05

आफ़ियत से मुसाफ़िर भी बैठे कहाँ
ख़त्म होता नहीं शाइरी का सफ़र

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28 JUL 2024 AT 6:35

मुशायरे तो बहुत लूटे 'मोहतरम' ने जनाब
पर आज तक उसे कोई पकड़ नहीं पाया






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1 JUL 2024 AT 12:55

हाल-ए-दिल अपना सुनाना छोड़ दे
हर किसी को आज़माना छोड़ दे

याद करते हैं ज़रूरत पड़ने पर
उस गली में आना-जाना छोड़ दे

दोस्ती की ऐसी फ़ितरत ही नहीं
जो नए ख़ातिर पुराना छोड़ दे

फेर लेंगे मुँह तेरे अपने ही याँ
बस तू हाँ में हाँ मिलाना छोड़ दे

गूँगे बहरों की है बस्ती "मोहतरम"
इनके आगे गिड़गिड़ाना छोड़ दे
-मनीष "मोहतरम"

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3 JUN 2024 AT 15:35

इतनी आसानी से नहीं चलता
बोझ घर का,उठाना पड़ता है

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25 MAY 2024 AT 9:07

किस तरह पढ़ रहे क़सीदे आप
सुन रहा हूँ मज़ार से चुपचाप

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