बस रोज़ मुझे एक नज़र देख लिया कर
इतवार जुमेरात न कर देख लिया कर
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25 जून 🥰🎉🥰
दर्द हर लफ़्ज़ में, भरा इतना ,
देखिये ख़त से,ख़ून रिस रहा है ।
श... read more
ख़त का मज़मून भाँप लेते थे
जो लिफ़ाफ़े को देख कर यारो
सामने से गुज़रते हैं लेकिन
अब मिलाते नहीं नज़र यारो
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कहता है कोई मेरे हक़ में तो
कोई मेरे ख़िलाफ़ कहता है
उसकी बातें समझ नहीं आती
जो यहाँ साफ़ साफ़ कहता है
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गुज़ारे किस तरह से दिन बताओ यार मुल्ज़िम भी
बरी होता नहीं तब तक उसे क़ातिल समझना है-
मुशायरे तो बहुत लूटे 'मोहतरम' ने जनाब
पर आज तक उसे कोई पकड़ नहीं पाया
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हाल-ए-दिल अपना सुनाना छोड़ दे
हर किसी को आज़माना छोड़ दे
याद करते हैं ज़रूरत पड़ने पर
उस गली में आना-जाना छोड़ दे
दोस्ती की ऐसी फ़ितरत ही नहीं
जो नए ख़ातिर पुराना छोड़ दे
फेर लेंगे मुँह तेरे अपने ही याँ
बस तू हाँ में हाँ मिलाना छोड़ दे
गूँगे बहरों की है बस्ती "मोहतरम"
इनके आगे गिड़गिड़ाना छोड़ दे
-मनीष "मोहतरम"-