Manish Kumar   (मनीष 'मुसाफ़िर')
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Joined 21 November 2020


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Joined 21 November 2020
28 AUG AT 0:39

कोई सर-फिरा है कोई मतलबी है
कहानी फ़क़त रंजो-ग़म से भरी है

जिधर देखिए जी-हुज़ूरी का आलम
अदब की नज़र में कहाँ तक सही है

रईसों की नज़रों में चुभता हूँ,जैसे
महल के मुक़ाबिल कोई झोपड़ी है

तबस्सुम कहाँ इन लबों पर ख़ुदाया
यहाँ जब क़दम-दर-क़दम बे-रु‌ख़ी है

शराफ़त की राहों में चलते नहीं जो
'मुसाफ़िर' ने उनसे मुलाक़ात की है
-मनीष 'मुसाफ़िर'

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18 AUG AT 9:13

रंज कितना भी हो फ़साने में
हिचकिचाता नहीं सुनाने में

जिनकी सोहबत में उम्र गुज़री है
हाथ उन्हीं का है दिल दुखाने में

वक़्त बिल्कुल नहीं लिया करते
लोग मेरे ख़िलाफ़ जाने में

रफ़्ता-रफ़्ता निकल रही यारो
ज़िन्दगी रूठने मनाने में

जुस्तुजू है ख़ुलूस की जिसको
आए मेरे ग़रीब-ख़ाने में
-मनीष 'मुसाफ़िर'




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7 AUG AT 22:33

नहीं मिला मेरा पैग़ाम अब तलक तुमको
तुम्हारे शह्र में चलती नहीं हवाएँ क्या


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7 AUG AT 8:37

कभी ज़लील करेगा कभी रुलाएगा
फिर उसके बाद अकेले में मुस्कुराएगा

हर एक ग़लती पे वो पर्दा डालकर अपनी
तुम्हारी ग़लतियाँ तफ़्सील से बताएगा

मियाँ वहम में न रहना मेरा मुसाहिब है
वो बीच रास्ते में तुमको छोड़ जाएगा

यक़ीन मानो,किसी रोज़ ऐसा होगा जब
उजाड़ कर तेरा वो अपना घर बनाएगा

मुसीबतों में कभी वो नहीं फँसेगा अगर
कहा मनीष 'मुसाफ़िर' का मान जाएगा
-मनीष 'मुसाफ़िर'


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5 AUG AT 8:53

वाक़िफ़ नहीं,मनीष 'मुसाफ़िर' की ग़ज़लों से
लगता है शह्र में अभी बिल्कुल नए हैं आप

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22 JUN AT 14:12

बस रोज़ मुझे एक नज़र देख लिया कर
इतवार जुमेरात न कर देख लिया कर

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4 JUN AT 21:16

ख़त का मज़मून भाँप लेते थे
जो लिफ़ाफ़े को देख कर यारो

सामने से गुज़रते हैं लेकिन
अब मिलाते नहीं नज़र यारो



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20 MAR AT 9:03

कहता है कोई मेरे हक़ में तो
कोई मेरे ख़िलाफ़ कहता है

उसकी बातें समझ नहीं आती
जो यहाँ साफ़ साफ़ कहता है

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19 MAR AT 13:30

कुछ दिनों तक नज़र नहीं आते
जिनको पैसे उधार देता हूँ

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18 MAR AT 21:22

गुज़ारे किस तरह से दिन बताओ यार मुल्ज़िम भी
बरी होता नहीं तब तक उसे क़ातिल समझना है

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