Manish Ganga   ({\/}@/\/¡${-})
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Joined 20 May 2017


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Joined 20 May 2017
4 MAY AT 0:23

तुमसे बेहतर रंगभेद की ,
परिभाषा कोई कर पायेगा क्या ।

आज भी दुनियां नाम तुम्हारा,
श्याम श्याम ही बतलाती है ।

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2 MAY AT 23:22

हैं पार्थ क्या भूल गये तुम ,
इस गाण्डीव को हाथ लगाना ।

तीरों की वर्षा करवाना ,
शत्रुओ का दिल दहलाना ।

क्या देख बरसते तीर ,
तुम्हारा रौद्र नहीं जाग उठता हैं ।

क्या कर्ण के विजय धनुष से,
युद्ध नहीं कर पाते हो ।

क्या अभिमन्यू की अंतिम पीड़ा,
याद नहीं रख पाते हो ।

हैं धनंजय प्रत्यंचा चढ़ाओ,
गाण्डीव उठाओ, बाण चलाओ ।

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1 MAY AT 9:25

तुमसे रूबरू होती कँहा हैं ज़िन्दगी,
बस तुम्हारी राह ताकती हैं जिंदगी ।

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30 APR AT 15:37

इक आस अब भी लगा रक्खीं हैं ,
इक तस्वीर तुम्हारी छुपा रक्खीं हैं ।

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27 APR AT 23:00

एक दूरी बना रक्खीं हैं दोनों ने ,
एक दूसरे को समझ नहीं पाते ।

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24 APR AT 20:42

क्या होता गर द्वापर मैं एक और विवाद होता ।
कृष्ण राधिका औऱ रुक्मणि का संवाद होता ।।

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22 APR AT 23:49

क्या भूल गई तुम श्रृंगार रस से ,
ख़ुद को सुशोभित करना ।

बिंदिया माथे पर क्यों अब,
तुमसे लगाई नहीं जाती।

मेरे दिए वो कँगन क्या अब
तुमको हाथों मैं नहीं आते ।

क्या भूल गई तुम नथ नाक मैं ,
कैसे पहनी जाती हैं ।

या झुमके तुम्हारे कानों को,
बोझिल लगते जाते हैं ।

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21 APR AT 23:51

है कृष्णा एक बात बताओ,
कया तुम भी विचलित हो जाते हो ।

मन के अंगारो को ठंडा करने ,
क्या तुम भी पार्थ बुलाते हो ।

क्या होता जब सिख मय्या की ,
तुमको याद नहीं आती ।

क्या लोक लाज के डर से माधव,
राधा को छोड़ कर जाते हो ।

क्या नंद गाँव की यादें तुमको,
रोज नहीं आ जाती हैं ।


हैं मधुसूदन एक बात बताओ ,
क्या तुम भी विचलित हो जाते हो ।

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19 APR AT 21:47

लिखा तुम्हें प्रेम से प्रेम मैं प्रेम के लिए ,
जैसे इंतजार लिखा
काले बादलों का बरसात के लिये,
जैसे रस लिखा ,
खिले फूलों का भँवरे के लिये,
जैसे रोशनी लिखा,
अंधेरे को खत्म करने के लिये,
जैसे तुम्हें लिखा,
मुझमें मैं होने के लिये ।

लिखा तुम्हें प्रेम से प्रेम मैं प्रेम के लिए ,

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12 APR AT 23:08

तुम सूर्यलोक से आती हो,
औऱ बड़ा इठलाती हो,
ज्येष्ठ माह मैं कोई तुमसे,
आँख मिला ना पाता हैं ,
गर्मी की तपती दुपहरी मैं,
तुम अपना रौब दिखती हो,
तुम सूर्यलोक से आती हो,
बरखा की मद्धम बूंदो से तुम,
आंख मिचोली करती हो ,
सावन मैं कारे बदरा के बीच,
तुम अपना तेज दिखाती हो ,
तुम सूर्यलोक से आती हो,
बसंत ऋतू मैं स्पर्श तुम्हारा ,
तेज स्फूर्ति दे जाता हैं ,
ऋतु शारदा ठंड गुलाबी,
तुम मुस्कान दे जाती हो

तुम सूर्यलोक से आती हो,
और बड़ा इठलाती हो ।

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