Manhas Sunil   (✍️ Sunil Rahi©)
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Joined 11 November 2017


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Joined 11 November 2017
6 AUG 2022 AT 0:29

फिर समेटा ना गया मुझको बिखर जाने के बाद
साथ शाम-ए-ग़म रही बस इक सहर जाने के बाद।

मैं नशे में हूँ तो मिलते लफ़्ज़ हैं जज़्बात को
बेज़ुबाँ जज़्बात होंगे ये असर जाने के बाद

मैं निभाता हूँ सभी वादे मोहब्बत के मगर
वो संवरता है वफ़ाओं से मुकर जाने के बाद

जो हसीं पल साथ गुज़रे बस वही तसकीन है
साथ ज़िंदा रहके भी हैं साथ मर जाने के बाद

बस ज़रा सी दूर पे मंज़िल है ‘राही’ देख तो
क्या करोगे ऐ बशर फिर तुम पसर जाने के बाद

2122 2122 2122 212(2121)

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4 MAY 2021 AT 16:59

जिस्म जाँ से जुदा कर रहा हूँ
देख तो ले मैं क्या कर रहा हूँ

नाम तेरा ही हर साँस पर है
मरते मरते वफ़ा कर रहा हूँ

उठ के महफ़िल से वो चल दिए यूँ
सोच कर मैं गिला कर रहा हूँ

क़ैद क्यूँ हो क़फ़स मैं कोई भी
सब परिंदे रिहा कर रहा हूँ

मेरे क़ातिल जिएगा बहुत तू
ज़िंदगी की दुआ कर रहा हूँ

है ग़लत गर तुझे चाहना तो
मैं ग़लत बारहा कर रहा हूँ।

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9 APR 2021 AT 23:14

इन हवाओं में नमी सी लग रही है
हाँ मुझे तेरी कमी सी लग रही है।

वक़्त ऐसा है लगे जैसे थमा हो
ये घड़ी मुझको थकी सी लग रही है।

राग ग़म का तीरगी क्यूँ गा रही है
रात पहलू में छुपी सी लग रही है।

याद से बस एक पल की थी जुदाई
उससे बिछड़े क्यूँ सदी सी लग रही है।

आइना तो साफ़ है तू देख “राही”
धूल चेहरे पे जमी सी लग रही है।

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6 APR 2021 AT 16:41

रंज ओ ग़म से मिरा राब्ता हो गया
ज़िंदगी क्या हुई हादसा हो गया।

दूर इतना गया मैं मुझे ढ़ूँडने
ख़ुद के अंदर ही मैं लापता हो गया।

था वो गुज़रा जहाँ से हूँ मैं भी वहीं
नक़्श पा ही मिरा रास्ता हो गया।

ज़ख्म दिल पे सहे हों हज़ारों अगर
क्या हुआ पाँव में आबला हो गया।

क्या अजब दास्ताँ तेरी मेरी रही
पास आते रहे फ़ासला हो गया।

हाथ से अपने जिसको तराशा गया
वो ही पत्थर मिरा अब ख़ुदा हो गया।

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6 APR 2021 AT 15:39

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6 APR 2021 AT 15:32

रंज ओ ग़म से मिरा राब्ता हो गया
ज़िंदगी क्या हुई , हादसा हो गया।

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26 JAN 2021 AT 21:26

दबे दिल के समंदर में कई ग़म थे पुराने से
बहा कर ले गए आँसू इन्हें ग़म के खज़ाने से।

मिरा भी हाल कोई अब सुना दे गर तो अच्छा है
नहीं वाक़िफ़ हूँ अपनी क़ैफ़ियत से इक ज़माने से।

ये तारीकी तिरे इस शहर की अच्छी नहीं लगती
करो रोशन अगर हो तो मिरे घर को जलाने से।

है यादों के चराग़ो से मिरे दिल का जहाँ रोशन
चमकती हैं बुझी आँखें तिरे मेरे फ़साने से।

नहीं मुमकिन दवा इसकी ज़माने में कहीं पर भी
ये दाग़ -ए- आह हैं "राही" नहीं मिटते मिटाने से।

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23 JAN 2021 AT 20:31

ख़्वाब में भी वो मुकम्मल ना हुआ
वो फ़साना जो बना था क्या हुआ।

तुम ही थे जो थे मुसलसल साथ में
बाद तेरे ऐसा साथी ना हुआ।

जो हुआ तू वो बता ये ना सुना
यूँ हुआ ऐसा हुआ वैसा हुआ।

वो शहर क्या ख़ूब था अब क्या कहूँ
जो गया उसकी गली रुसवा हुआ।

गुल भी थे इस बाग़ में इक वक़्त था
वक़्त के ही साथ फिर सहरा हुआ।


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23 JAN 2021 AT 18:53

तुम ही थे जो थे मुसलसल साथ में
बाद तेरे ऐसा साथी ना हुआ

2122 2122 212

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23 JAN 2021 AT 18:20

ख़्वाब में भी वो मुकम्मल ना हुआ
वो फ़साना जो बना था क्या हुआ।

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