Maneesha Mishra  
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Joined 22 July 2018


Joined 22 July 2018
23 AUG 2020 AT 15:44

अब बैठे-बैठे घंटों तक कोई बतियाता नहीं
छुपन छुपाई खेलते नन्हे कदम छुपाता नहीं
समेटे साफ घर को कोई बिखेरता नहीं
छोटी सी नोकझोंक के बाद कोई मनाता नही
सभी व्यस्त अपनी जिंदगी में कोई आता नहीं

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10 MAY 2020 AT 10:35

अर्थ संघर्ष का जाना मैंने उसके संघर्षों से ,
संस्कारों को उसकी हर सिखाइए सीखों से,
परिस्थितियों से लड़ना कभी हार ना मानना सीखा मैंने, अपनों को महत्व देना सिखाया जिसने ,
कमजोरी को ताकत में बदलना सिखाया,
हिमालय ‌सी परेशानियों का सामना करने का हौसला दिया ,
अपनी किस्मत से भी लड़ना सिखाया,
कभी गलत के आगे ना जुकना समझाया ,
दुख में भी मुस्कुराना सिखाया ,
व्यवहार में नरम परिस्थितियों के आगे गरम ,
"मेरी मां"

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13 APR 2020 AT 9:51

बाहर इतने जटिल और अंदर सरल कैसे हो जाते हो ?
मेरे हर गुस्से में चाशनी कैसे घोल जाते हो?
हर किसी से इतने तर्क करने वाले मेरे इतनी निरर्थक बातें कैसे सुन पाते हो ?
तुम इतनी ईमानदारी से अपनी सारी भावनाएं कैसे व्यक्त कर पाते हो?
मेरे बिन बोले भी सब कुछ सुन और समझ कैसे पाते हो?

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28 MAR 2020 AT 22:00

अब तक‌ जिससे‌ महरूम रहे हो
उस अज़ीज़ संग समय बिताओ,
खुद की कमियां खुद ही दूर करो
स्वयं की तारीफों पर इतराओ
दुनिया भर से बातें करते
कुछ पल अंतर्मन संग बतियाओ।



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27 MAR 2020 AT 18:33

बहुत अपने कमाए हैं मैंने|❤

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12 JAN 2020 AT 0:00

मैं लिखती हूँ क्योंकि‌ कुछ दर्द में ,
लेखनी से अच्छी कोई हमदर्द नहीं होती ।
कुछ कहूं तो भर आते‌ हैं आंखो में आंसू ,
हाथों को ऐसी कोई परेशानी नहीं होती ।
कुछ भी जी में आए लिख लेती हूँ,
क्योंकि पन्नों की कोई व्यस्तता नहीं होती ।
सुख भी जीवन के साझा कर लेती हूँ,
क्योंकि इसको कभी ईर्ष्या नहीं होती ।

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11 JAN 2020 AT 22:51


ये अधिकार अगर देश में कोई अपनी बात बैखोफ अभिव्यक्त न कर पाये|

और किस काम का है ......

ऐसा समाज जो खुद के लाभ के लिये हाशिये में दूसरों को ढकेल दे|

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10 JAN 2020 AT 20:37

मेरी हर मुश्किल में जैसे चोट में मलहम ,
मेरी माँ
हर विपरीत परिस्थिति के आगे चट्टानों सी प्रखर,
मेरी माँ
मेरे हर उलझे हुए सवालों का हल मेरी माँ|

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31 DEC 2019 AT 23:17

मैं ‌बिखर सी जाती हूँ अक्सर, न जाने कैसे समेट लेते हो ‌तुम।
मैं खो सी‌ जाती हूँ, न जाने कैसे ढूँढ लेते हो तुम|
परेशानियों मे उलझ सी जाती हूँ, न जाने कैसे हल‌ कर लेते हो तुम|
मुझे हर मुसिबत में सबसे पहले याद आते हो तुम|
कभी गर खुशियाँ होगी जीवन में तो हकदार होगें तुम|

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21 SEP 2019 AT 14:16

जिंदगी किसी के लिए इतनी सख्त
और किसी के लिए इतनी सहज क्यों है?
जिंदगी की ‌ये मनमर्जिया कहाँ किसी
कानून की किताब में दर्ज है ।
भेदभाव इतना की‌ सजा-ए-मौत‌‌ भी कम है।

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