Maneesha Agrawal   (MVG)
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Dedicated.
Joined 10 August 2018


Dedicated.
Joined 10 August 2018
29 JUN AT 1:28

कुछ याद कहे जाए है अफसाना रात का
...कुछ रात सुनाने लगी है यादों के किस्से

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26 JUN AT 23:43

अच्छा, रचना न हो तो रचयिता भी नहीं होगा। कार्य न हो तो कारण नहीं, कर्म न हो तो कर्ता नहीं। ... तो अणु-परमाणुमात्र ही सही, किसी रचयिता की प्रसिद्धि का कारण मैं और आप भी हैं!!

सोचिए, इतना गौरव कम है "होने" के लिए?

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22 JUN AT 23:59

अच्छा, मन को साध लेने से मस्तिष्क भी सध जाता है क्या?

- मस्तिष्क सध जाता है तो ही मन को साथ पाता है।

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20 JUN AT 0:32

यूँ नमी भर के न चल आँखों में
देख संभल..!
कोई इस राह पे आता न हो



और कुछ देर ठहर!
रात अभी बाकी है
कोई इस राह से जाता न हो..

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17 JUN AT 23:35

है अदम्य वंचना जिजीविषा अगर यहाँ
मुक्ति की अथक अगाध साध भी तो सत्य है

कर्म भक्ति ज्ञान के विराग सत्य हैं जहाँ
प्रेम त्याग भावना के राग भी तो तथ्य हैं

सत्य है अगुण अदेह कोई रचयिता अगर
तो रुप गुण लिए हुए प्रति-कृति भी सत्य है

है द्वंद्व हर सही, मगर है एक्य में निहित हुआ
भ्रम बने जो न दिखे... दिख पड़े तो सत्य है!!

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9 JUN AT 1:23

उसी तलाश में निकले कदम रुके से हैं
सिरे अंधेरे आसमान के... झुके से हैं!

सुबह है दूर यहाँ कौन नूर बन के जले
कि हौसले हरेक चिराग़ के चुके से हैं।।

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4 JUN AT 23:53

कभी कभी शब्दों को गौर से देखना भी दिलचस्प होता है।
चिंता और चिंतन को ही लीजिए - ऊपर से देखने पर भले एक ही अर्थ लगे, किन्तु है नहीं। चिंतन करने वाले को कोई चिंता नहीं होती और चिंता करने वाला चिंतन कर नहीं सकता।
सोचिए, भाषा भी तो चिंतन का ही विषय जो है!!

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2 JUN AT 0:59

.. मिल ही रहेंगे
और किसी आसमां तले
दिल के किसी सवाल पे क्यों चाँदनी जले

कहती है कोई भीगी नज़र
आज ठहर जा!
क्या जाने किस मक़ाम पे ये रात ले चले..

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26 MAY AT 0:31

अच्छा, सितारों को तो कारवां मिला है न...
अकेले कहाँ हैं आसमान में! फिर क्यों टूटते हैं?
क्यों नहीं किरणों की उंगलियाँ पसार कर एक दूसरे को थाम लेते?

.. किसी पर लुटे जाते होंगे, शायद!!

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25 MAY AT 0:36

.. कुछ तो रुका-रुका सा है

दम साधे आसमान है
अजनबी हुआ जहान है
दोनों ही के दरम्यां
कुछ तो घुटा-घुटा सा है..

बयार के रुखे क़दम
है रात की बारात कम
दहक रही दोपहर का
परचम झुका-झुका सा है

कुछ तो रुका-रुका सा है..?

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