युद्ध नापाक से है
तो विराम कैसा
जंग का जुनून है दोनों तरफ
आतंक ज़िन्दा है तो युद्धविराम कैसा-
खुद ब खुद को एक सवाल लिखता हूं
तलवार खंज़र खाए... read more
खामोशी दिख रही होगी चेहरे पर तुम्हें
शोर सीने में सांस ले रहा, बस थोड़ी आवाज दबी है
अभी ना छेड़ इतना गहराई तक मुझे
आग सिर्फ बुझी है, भीतर थोडी़ अंगार भी दबी है-
खुली आंखों सेे रुकती सी सांसों से
देखूँ हर पल राह मैं पूरी
रब के आने का इन्तजार हो जैसे
शायद है अभी दिलों में दुरी
की हो बेशक पार कुछ मीलों की दूरी
पल पल आए ज़हन में खयाल तुम्हारे
बता हर पल तेरा दीदार हो कैसे
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ये कौन है बेवक्त आवाजें दे रहा
रूखा सा जैसे जनाजे से आ रहा
दहलीज पड़ी बिन चौखट मेरी
क्यूँ ये खोल दरवाजे कह रहा
मै कफ़न में मस्त दफ़न कब्र में
कौन ये साथ चलने को कह रहा-
मुझसे अब खुद का बोझ नही उठाया जाता,
मुझे उठाने को अब चार लोग बुलाए जाएं।-
इज़हार-ए-इश्क़ कहां होता है
कभी जी घबरा रहा होता है
तो कभी हाथ कांप रहा होता है।
लफ्ज़ दम तोड़ देते हैं ज़ुबाँ पर आने से पहले
आंखों में मोहब्बत से ज्यादा आसूं आ जाते है पहले
दीदार को भी तरसते रहोगे इन्कार मिला तो
भला इस डर में इज़हार-ए-इश्क़ कहाँ होता है।-
सिग्नल पर पेन बेच रहे बच्चे
अक्सर शिक्षा से दूर रह जाते हैं।
मन्दिर में बैठे पुजारी भी
भक्ती से दूर रह जाते हैं।
भूखे पेट सो जाता है किसान भी
अक्सर बावर्ची भी भुखे सो जाते हैं।
तंगी में रहते हैं बैंक कर्मी भी
शाम होते खाली हाथ चले जाते हैं।
अधुरी रह हैं जाती रानीयाँ भी
अक्सर राजा बेशवा के हिस्से चले जाते हैं।
धरती तरस रही घास बिना कई जगह
कहीं पेड़ दीवार में उग जाते हैं।-
एक अजीब सी बेचैनी छाई है जैसे कुछ होने वाला है
आंखें ठहरी है पत्थर सी बस दिल ही रोने वाला है।
बंद खोल के देख ली है मुठ्ठी कई बार हाथ खाली है
फिर लगता है जैसे कुछ खोने वाला है।
दिन कटता है भागम भाग में रातें कटती पूरी जाग में
आंख मिचौली छोड़ मनदीप शायद अब सोने वाला है।
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मेरी हार की खबर मिल चुकी होगी शायद घर में,
लाख ढूँढने पर मुझे कोई रस्सी नहीं मिली ।-
बेशक तुम मांगो दुआएँ कि तुम्हे पा ना सकूं
बेहद बेइंतहा तुम्हें चाह ना सकूं
बातें बनाकर सपने दिखाकर करीब आ न सकूं
वो बनावटी सी बातें सुना ना सकूं
काश दिखा सकता बेशकीमती मेरे खयालों में जो है
जो किसी और बे कदर के आगे गंवा न सकूं
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