दिल ना उम्मीद नहीं,
नाकाम ही तो है
लम्बी है गम की शाम,
मगर शाम ही तो है।
कई अरसे से, अंगारों पर जल रही थी,
दिल के किसी कोने में जुलस सी गई थी,
पर, क्या हुआ,
वो आग के बाद, आखिर राख ही तो है,
आसान नहीं थी वो रातें,
जो तुमने बिताई तकिए के सिरहाने,
कभी आंसुओ से,
तो कभी उम्मीद के इंतजार में,
कोई बात नही,
आज ये गहरी रात है,
पर कल वापस नई सुभा भी तो है।
ढूंढ रहीं हो तुम ऐसी कविताएं,
जो दिल को छुके तुम्हे अपना बनाए,
कल तक जो एक खोज थी,
आज आंखो के सामने भी तो है।
खो दो आज खुद को,
इस नाकामयाबी और दर्द की महफिल में,
महफिल ही तो है,
तुम्हारी खुशियों का जश्न मनाना अभी बाकी है ।
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तुम्हारे घाव बहोत गहरे है।
मुझे मालूम है, की ये एक दिन के नहीं,
कई अरसे से तुम्हारे बदन पर ठहरे है।
कुछ घाव वक्त ने दिए है,
कुछ दुनिया ने,
तो कुछ हालात ने।
लेकिन वो जो सीने पे सबसे गहरे जख्म है,
वो शायद मैने तुम्हे दिए है।
मुझे पता है, तुम्हारे घाव बहोत गहरे है।
मरहम लगा भी दू तो क्या होगा,
दर्द का आलम कम तो न होगा?
वक्त पे छोड़ दूं तो भी क्या होगा,
तुम्हे वक्त से भी तो गुजरना ही होगा!
चाह कर भी तुम्हें सुकून न दे सकू..
शायद ये मेरे जख्म है,
चाह कर भी तुम्हें दर्द से जुदा न कर सकू,
शायद ये मेरी सजा है..
तुम्हारे जख्म मासूम है,
दर्द देंगे, पर भर भी जाएंगे..
पर मेरे जख्म मासूम नही है,
जिंदगी भर ये मुझे दर्द का एहसास दिलायेंगे!
मरहम ना लगाओ तो कोई बात नही,
बस, हो सके तो
मेरे पास आके कभी बैठ लिया करना।
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जख्म देकर अकेला छोड़ जाने वाले बहोत मिलेंगे,
जख्म देकर मरहम लगाने वाले भी मिलेंगे।
लेकिन बिना जख्म दिए, मरहम लगाने वाले बहोत कम मिलेंगे...
इन्हें संभाल के रखना
जहां अपने भी दगा देते है,
वहां ये लोग अपनेपन का सही अर्थ समझा देते है।
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तुमसे इश्क होना,
मेरी किस्मत में था,
बस में नहीं।
तुम्हारा प्यार पाना मेरे हिस्से में था,
मेरा जुनून नही।
और..तुमसे यूं बिछड़ जाना... मेरे नसीब में है,
हां, मेरे टूटे से नसीब में है..
पर इरादे में नहीं।
लेकिन, नियति से ज्यादा ताकतवर कोई नही।
और तुमसे वापस मिलना, नियति में है,
उसपे ना किस्मत, ना नसीब, और ना ही इरादे का बस है।
तुम और मैं, फिर जरूर मिलेंगे।-
एक तुम थे,
जो सब जान कर भी अनजान बने...
और एक वो है,
जो सब कुछ जान कर भी,
अनजान रहे,
फर्क क्या था?
तुम अपने बनकर भी,
अजनबी से अनजान बने
और वो,
अजनबी होकर भी,
अपनो की तरह अनजान बने
फिर भी, फर्क क्या है... है ना?
फर्क बस एक था...
तुम मुझे नजरंदाज करते रहे,
और वो, अपनी नजर से मेरे दर्द के अंदाज को समझते रहे।
सच, कभी कभी, अपने ही सिखाते है की अपनापन निभाना सबके बस की बात नहीं।
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आप मुझसे कहते है की
" मोहब्बत का मतलब
समझना इतना आसान नहीं है, मैथिली!
मोहब्बत एक गहरी चीज है
इसके कई पहलू होते है...
वक्त के साथ समझ जाओगी"
और मैने आपकी कही सारी बातें आंख बंद कर के मान ली..
आखिर आपका दर्जा खुदा के कुछ करीब सा था मेरी जिंदगी में।
लेकिन, हर रात, एक सवाल मेरे बिस्तर पर रोज आके बैठता था..
मुझे सहलाता था और मेरी तरफ असहाय होकर देखता रहता था...
"क्या मोहब्बत इतनी मुश्किल है,
की तुम्हारी तरफ दो नजर प्यार से देखना भी उनके लिए एक बड़े कार्य के समान कठिन है?
क्या मोहब्बत के इतने सारे पहलू है,
की तुम्हारी खैरियत की खबर रखना उन्हें जरूरी नहीं लगता?
ये कैसी मोहब्बत है मैथिली?
क्या ये मोहब्बत ही है?"
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में देर रात तक इंतजार करती रही,
के शायद वो लौट आए,
अगर कोई प्रेमी होता,
तो बेशक लौट आता,
किसी न किसी तरह
अपने होने का एहसास दिला ही देता,
नही भी होता,
तो उसके नही होने का एहसास भी
उसके घृणा भरे
या उसके उपेक्षा भरे व्यवहार में मिल ही जाता,
पर यहां मैं किसी प्रेमी का इंतजार कहां कर रही थी
मैं तो अपने आप का इंतजार कर रही थी।
के शायद,
वो जो फूलों सी मासूम
तितलियों सी चंचल,
और नदियों सी मुस्कुराती
लड़की थी,
जो किसी दिन, खुशी से मुस्कुरा कर
हर रात मेरे कंबल में मुझसे लिपट कर
सुकून की नींद सोती थी,
जो गीत गाती थी,
हवाओं से बातें करती थी,
वो न जाने कहा खो गई है?
उसके इंतजार में आज फिर से मैने एक और रात गुजारी है।
वो कहीं मिल जाए तो उसे कहना,
की मैं उसका इंतजार कर रही हूं ।
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आज रात को होने में थोड़ी सी देर हो गई,
मेरी नींद मुझसे थोड़ी सी गैर हो गई
खयालों में तुम्हारे, थोड़ी सी सैर हो गई,
पर वापस आने में, ना जाने क्यूं दोपहर हो गई
यूं तो तुमसे है मिलो का फासला,
कभी देखा,
तोह कभी अनदेखा सा
पर जब जब ये रात देर से होती है,
तब तब, मुझे तुमसे मिलाती है,
और ये मिलों के फांसले उसकी परछाई में कहीं गुम हो जाते है।
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