Manali Bhandari  
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Joined 24 July 2020


Joined 24 July 2020
14 MAR 2022 AT 14:18

मेरी खुशियों से जलो मत..
राख होके आग कैसे लगाओगे?

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24 OCT 2021 AT 17:13

कर्मों का हिसाब जब किया जाएगा,
अपना बन छुरा घोंपने वाला सबसे पहले गिना जाएगा।

दिखावे की इस दुनिया मे
मुखौटा कोई भी लगा लो,
एक न एक दिन असली चहरा सामने आ ही जाएगा।।

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24 OCT 2021 AT 13:35

कभी आधी नींद में बिस्तर पर हाथ फेरोगे मुझे ढूंढने को तुम,
सिलवटों में भी शायद न मिलूँगी फिर तुम्हे ..

मुची आँखो से तो दूर,
खुली आँखो से भी न दिखूँगी मैं..

तुम गुस्सा करना, चीखना, चिल्लाना मुझ पर जोर से,
पर इस एक दफ़ा न डरूंगी और न रोऊँगी मैं..

तुम उदास मत होना गर न मिलूँ मैं,
खुश होना कि अब कोई रोज़ सताएगा नहीं तुम्हे।

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22 OCT 2021 AT 23:02

दिल पर लगे घाव कभी भी हरे हो जाते हैं
मैं लाख पट्टी करूं इन पर दिन के उजालों में
लेकिन अकेली रातों में
ये टांके फिर खुल ही जाते हैं

बात मुँह से कही गई
लेकिन चोट दिल पे करती है
एक बार घाव कर,
फिर कहाँ दिल से निकलती है!

मेरे दिल का दर्द मेरे सिवा कोई कैसे समझे
क्यूँकी मैने कभी दिखाना पसंद ही नहीं किया
लेकिन दिखा भी दूं तो क्या
यह दर्द सहना तो अकेले ही है

लोगों को खुले जख्म दिखते हैं
बंद चोट का दर्द कैसे दिखे
जख्मों पर तो मरहम लग भी जाए
लेकिन वो निशां आखिर कैसे मिटें ?

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19 OCT 2021 AT 20:21

आत्महत्या एक क्षण, एक दिन, एक महीने का निर्णय नही होता,
यह सबब होता है कई बातों का, यादों का, लहज़ों का, नज़रों का, उन दर्द, दुख, आँसुओं का
जो आप सदियों से साथ लेकर चले हो अपने जहन की उस गहराई में जहाँ आप जमाने से धंसते चले जा रहे हो
जब वो आखिरी दिन आएगा तो आप इतना अंदर जा चुके होगे कि लाख कोशिश पर भी बाहर आना मुश्किल होगा
कोई हाथ खीचने वाला कितना भी ज़ोर लगा ले,
उस गहराई से नही ला पाएगा
फिर आप एक किस्सा बन जाओगे
लोग बोलेंगे कि एक पल लगता है थोड़ा सब्र करो
लेकिन हकीकत यह है कि एक पल नहीं बल्कि कई साल लगते हैं उस गहराई से बाहर निकलने की कोशिश में
लेकिन हर बार ज़ोर लगाने पर आप और अंदर जाते हो
काश किसी ने समय रहते कोशिश की होती

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12 SEP 2021 AT 15:52

इंसान का भरोसा नही भ्रम टूटता है !

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12 JUN 2021 AT 12:43

यह गर्मियों की बात है.. मम्मी ने किसी बात पर बहुत मारा था मुझे, तो अपनी 'साइकल' पकड़ कर भाग गई थी मैं अपनी नानी के घर ।
काश.. तब पता होता कि 'मोबाइल' से भी भाग सकते हैं..
तो इतनी मेहनत न करनी पड़ती उस दिन उतनी गर्मी में 😥

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30 APR 2021 AT 12:00

खुद को 'भूल' कर तुम्हें चुना था..
आज लगता है कहीं 'भूल' तो नहीं की कोई?

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19 MAR 2021 AT 15:26

फटी जीन्स भी सिला लेंगे
छोटे शॉर्ट्स भी बढ़ा लेंगे
उसके बाद भी तुम्हारी नज़रें रुक जायें ग़र
साड़ी में दिखती कमर के हिस्से पर
खुले नाखून, होंठ, या आँखों पर
और तुम खुद की भावनाओं को थाम न पाओ
अपनी भावनाएं रोकने के लिए नारी को संस्कृति का पाठ पड़ाओ
तो उस दिन एक काम करना
कब्र खोदना हमारी और मिट्टी की उस गहराई तक डालना
जहाँ तक तुम्हारी सोच गई है!
इतना नीचे तक खोद पाओगे क्या?

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17 FEB 2021 AT 16:38

कभी कभी खुद को बहुत अकेला मेहसूस करती हूँ
भीड़ से कहीं दूर, अकेले कमरे में बस दीवारें तकती हूँ
तकती रहती हूँ उन्हें कई कई घंटों तक
शायद तकती हूँ जब तक मैं खुद न जाऊँ थक
फिर थक के सो जाती हूँ
काम कुछ नहीं करके भी मैं अंदर से थक जाती हूँ
अकेलापन शायद कमज़ोर करता होगा
या शायद सोच का सैलाब मुझे खाली करता होगा
ऐसे में न किसी से बात करने की ईच्छा होती है और न ही कुछ सुनने का मन
क्योंकि बस यही एक चीज थी हमेशा से जिस से मैं घबराती थी हर पल
कई सालों तक हास्टल की भीड़ में रही हूँ
फ्लैट्स भी जान बूझ कर शेयरिंग वाली ली हूँ
ताकि रहना पड़े न कभी अकेला यूँ
जब भी अकेले होती थी तो उदास सी रहती थी
बहुत बोलने वाली लड़की हूँ तो चुप ज़्यादा देर तक नहीं रह सकती हूं
इसलिए आज भी बातें तो करती हूं
कोई नहीं है आस पास तो अपने आप से ही करती हूँ
अब शायद वो आदत इतनी बढ़ चुकी है कि पूरा दिन अकेले बातें कर के भी
किसी के साथ होने पर भी मैं अपने से ही बातें करती हूँ
देर रात तक बातें करती हूँ
कई कई बार तो सपनों में भी बातें करते सुनाई देती हूँ
इतनी बातें कर के शायद सुबह होने तक फिर मैं थक जाती हूँ
थक के दीवारें तक के फ़िर मैं सो जाती हूँ..

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