Mamta Kushwaha   (Mamta Kushwaha)
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Joined 11 March 2019


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Joined 11 March 2019
11 JAN AT 22:03


कुछ तारीख इतने बदनसीब हो जाते हैं
कि जब भी आता वह तारीख तो
उसके हिस्से बचता हैं तो
सिर्फ पूराने जख़्मो को
कुरेद नासूर बनाने का दोष....

- ममता कुशवाहा


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3 OCT 2023 AT 11:09

कुछ खिड़कियां बहुत खास होती है
जहाँ इश्क़ की कई दास्तां छुपी होती है,
कुछ अधुरे, कुछ मुकम्मल ,
कई किस्सें समेट रखी होती है
कुछ खिड़कियां बहुत खास होती है।

ममता कुशवाहा ।

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18 SEP 2023 AT 12:50

विरही मन की प्यास
मिलन की आस रुहानी है
पवन का झोंका कर रही अट्ठखेलिया
मंद - मंद मुस्का रही
मानो बरसों की प्यास दूर हो रही
और कर रही तृप्त बुँदे बारिश की ।

ममता कुशवाहा

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4 JUL 2023 AT 20:58

हाँ थोड़ा और इंतज़ार
“थोड़ा और ,थोड़ा और ”करके
कभी -कभी खत्म हो जाती है चाहत उसकी
जिसके लिए करते हैं हम इंतजार बरसों से
हाँ खत्म हो जाती है इंतज़ार की घड़ी
और साथ-साथ उस चीज की ख्वाहिश भी
क्योंकि “थोड़ा और ,थोड़ा और” करके
इंतजार के साथ -साथ
हमारे एहसास भी दम तोड़ देती है
जैसे प्यासे को पानी तब मिलना
दर -दर भटकने के बाद उसके
जब जिन्दगी की अंतिम साँसे गिन रहा हो ।

ममता कुशवाहा

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18 APR 2023 AT 19:52


दोनों की दरमियाँ फांसले इतने हुए
कि हर रिश्ता अब बेबुनियाद दिखने लगे
करे क्या शिकायतें जब अपने ही
अजनबियों सा रूख मोड़ने लगे ।

ममता कुशवाहा

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12 APR 2023 AT 11:23

दूरियों से डरते - डरते
मजबूरीयों का नाम दे
और हमसे दूर होते गए
खैर रूसवाई नहीं अब आपसे
जब अपने ही हमें गैर करते गए
तो कैसा गिला - शिक़वा
अब तो आदत सी हो गई हमें
जख्मों को खंजर बनते देखने का ।

ममता कुशवाहा

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1 APR 2023 AT 18:01



ये शाम बारिश वाली
और ये बारिश तेरे यादों के नाम
हाँ तेरे यादों के नाम,तेरे अल्फ़ाज़ों के नाम
ये बारिश कर रही हर बूंद-बूंद में
तेरे यादों का ताजा मानो कल की ही बातें
ये बारिश ले आयी संग अपने कई किस्से
किस्से तेरे - मेरे रूहानी इश्क़ की
बीते पूराने अल्फ़ाज़ों की, जज्बातों की
कर रही है ये हमसे गुफ्तगू आहिस्ता -आहिस्ता
और बना रही ये शाम मेरी सुहानी ।

ममता कुशवाहा

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13 FEB 2023 AT 14:05

“चूम लो एहसास मेरे
और भर बाहों में मुझे
कुछ इस तरह लिपटों
कि ना रहे दरमियाँ हमारे बीच
जो कर सके फ़ासले हमारे प्रेम में ।”
ममता कुशवाहा ।

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10 FEB 2023 AT 14:37

पल -पल रूख़ बदलते है लोग यहाँ
हर मंजर में एक नया मंजर तलाश करते
जनाब दस्तूर ये मोहब्बत में निभा रहे
बेहद ही सादगी से एक के बाहों में होते
और दूजे के ख्यालों में खोये- खोये रहते।

ममता कुशवाहा

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17 JAN 2023 AT 1:44

अलविदा ही कहना था तो
क्यों संजोये ख्वाब अनेक
क्यों बन गए हमराह मेरे
अलविदा ही कहना था तो
क्यों जताया अपनापन
क्या कहूँ अब तुमसे
जब तन्हा कर दूर चले गए हमसे

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