किसी का
भड़भड़ाकर गिरना
उसके खोखलेपन का परिचायक है
फिर चाहे आदमी हो या इमारत
या फिर कुछ और!
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मैंने कभी शमशान नहीं देखा
न देखा चिताओं को जलते हुए
मैंने लाशों को नहीं
ज़िन्दा इमारतों को जलते देखा है
जिन्हें देखना ज़्यादा भयावह है
लाशों को जलते देखने से
ठीक वैसे ही जैसे दो पाए पशु
अधिक खतरनाक होते हैं
चौपाए पशुओं से!
ज़िन्दों और मृतकों के बीच
ये कैसा फासला है?
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दुख को देखना जीना और पकड़ना लेखक का
एकमात्र कौशल ही नहीं मनुष्य होने का प्रमाण भी है!
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वे खुश हैं जो सफल रहे
खुद को संयत और उन्हें असंतुलित करने में
जो शिकार थे गलतफ़हमी का
दरअसल जितना सहज है
आवाज़ को ऊँचा करना
उतना ही मुश्किल है लफ़्ज़ों का वज़न बढ़ाना
दोनों विपरीत हैं एक-दूसरे के
खामोशी दोनों का अर्थ जानती है!
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शांति बनाए रखना
अच्छी बात है पर बोलने की जगह चुप रहना
खुद को कायरता की कसौटी पर कसने जैसा है!
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हमें आपदाओं ने नहीं अवसरों ने मारा है
सीमाओं ने नहीं समय ने मारा है
हमें आशंकाओं ने नहीं
आशाओं ने मारा है
जज़्बातों ने नहीं
अरमानों ने मारा है
हमें दुश्मनों ने नहीं दोस्तों ने मारा है
सच कहूँ तो किसी और ने नहीं हमें खुद ने मारा है!
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गर गढ़नी हो कविता
तो पकाना शब्दों को पक्की हाँडी में
कच्चे चावलों की तरह
धैर्य की पतीली पर चढ़ा भावनाओं का भात
पलटना समय की सुराही से मुक़म्मल पानी
देना मद्धम सा ताप
मिलाकर संवेदनाओं का नमक
सहानुभूति का मोयन
जब हो जाए प्रेम का पकवान तैयार
तो परोसना मधुर मुस्कान के संग
हृदय की थाली में
सजा हँसी के गुलदस्ते से
कि चखकर कोई पूछ सके
क्या इसी का नाम है
कविता?
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वे दिखा रहे हैं
ताकत दुनिया को
उड़ेल रहे हैं लाल रंग
जबकि बिखेरना था हरा
वे न लाल का अर्थ जानते न हरे का
कैसे बचाएंगे इस दुनिया को पीला होने से?
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भीतर
गिरता है
एक विपुल प्रपात
नयी पुरानी स्मृतियाँ बनकर
जैसे
झड़ती है
होठों से हँसी
जैसे झड़ते हैं दुख में आँसू
जैसे
झड़ता है
शैलों से झरना
जैसे झड़ते हैं पतझड़ में पात
और
एक दिन
झड़ जाता है
जीवन से प्रेम भी ठीक
इसी तरह!
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जानती हूँ
तुम साहसी हो
मगर डरते हो
मेरे पहाड़ी टीलों पर चढ़ने से
क्या तुम्हें भय है मेरे गिर जाने का
या खुद के अकेले हो जाने का?
इसीलिए नहीं थामते मेरा हाथ?
क्या तुम्हें लगता है
मैं रहना चाहती हूँ
पहाड़ों की हसीं वादियों में?
कहीं तुम आशंकित तो नहीं
वहाँ भी होते हैं प्रेम प्रसंग?
सुनो प्रिये!
पहाड़ी टीलों पर चढ़ना
प्रगति का प्रतीक भले ही न हो
पर, हाथ थामकर चलना
विकास का पहला
क्रम है!!-